कविता : सफलता से पहले
सफलता से पहले
और असफलता के बाद
एक सिरे पर खड़े
हम करते हैं संघर्ष
बड़े बड़े विमर्श
करते हैं हर पहलू पर गौर
बनाते हैं रूपरेखा
फूँक फूँक कर तब कहीं
बढ़ाते हैं कदम आगे
खपा देते हैं खुद को
जूझते हैं हर वक्त
होकर पत्थर की तरह सख्त…
तब ऐसे में ज़रूरी होता है
अहम् को छोड़ना
सिरों को भी जोड़ना
ताकि रक्त के साथ
बहते रहें एहसास और जज़्बात
होती रहे अपनों से बात
बना रहे विश्वास
बढ़े आत्मविश्वास
करते रहें परवाह
वजहें भले ही कितनी हों मुश्किल
मिले रहें एक दूजे से दिल….
कि अनवरत प्रकिया है दिन के बाद रात और रात के बाद दिन…
!! शिप्रा !!