कविता : वर्षा
वर्षा की बूँदें पड़ती हैं जब
प्यासी धरा के अधर पे
उठती है एक सोंधी सुगन्ध
खिल उठती है हर कली
और महकने लगते हैं फूल
पिय के आगमन पे जैसे
हरी चुनर ओढ़ बैठ गई हो
नवयौवना कोई वैसे ही
धरती ओढ़ लेती है
हरियाली का आवरण
मुरझाये पौधे भी े
हरिहराने लगते हैं जैसे
मिल गई हो टूटते साँसों को
कुछ और पल जीवन के
जिसे जी लेना चाहता वो
बून्द बून्द करके।।
-सुमन शर्मा