मैं भी फल्गु सा
बिल्कुल
फल्गु सा है
मेरा दिल ।
अपनी वेदना है
फल्गु की
तो
मैं भी
भरा पड़ा हूँ
वेदनाओं से ।
निश्चित
चाहती होगी जलधारा
बाहर निकलना
और
उपरी सतह पर बहना ।
मेरी भी चाहत है
बहा लूँ
दिल का दर्द
आँसू के रूप में ।
शायद
जलधारा को कैद रखना
फल्गु की मजबूरी हो
और
वैसी ही अन्तस्थिति
मेरी भी है ।
कैद हैं दिल में
बेशुमार आँसू
जो छलकने को हैं तैयार ।
किन्तु डर है
समाज से
क्योंकि
नमक लिए बैठा है
यहाँ इंसान
जख्म की तलाश में !!!