सुन रहा है न ?
कहाँ छिपी है काली बदरिया…
आसमां !
काले बदरा को
कहाँ छिपाकर रखा है ।
न उमड़ता है
न घुमड़ता है
आखिर है कहाँ ?
धरती का पानी सोख
वो कहाँ मग्न है
बोल न आसमां !
व्याकुल है धरती
लेकिन
उसे उम्मीद है
काली बदरिया
लौटाएगी सूद सहित मूलधन ।
इसी आस मैं है
ताल-तलैया
आहर-पोखर
नदी-नाला !
आसमां !
काले बदरा को
बता उसका कर्तव्य
उसका धर्म
उसका कर्म ।
शायद !
वो भी
भूला गया हो
अपना कर्तव्य
इंसानों की तरह ।
वो
छलबाज न कहाये
दगाबाज न कहाये
इसलिए
निभा अपनी भूमिका
महापुरुष की तरह ।
आसमान
सुन रहा है न ?