ऋतु सावन की
मेघ जल बरसा रहे
धरती की अग्न मिटा रहे
कलि कलि मुस्का रही
किसान ख़ुशी से झूम रहे
अपने खेतों को चूम रहे
पशुओं की आवाज आ रही
इन्द्रधनुष की छटा देखो
काली काली घटा देखो
हवा कोना कोना महका रही
वर्षा की चर चर लगी
मेंडको की टर टर लगी
कोयल भी गीत गा रही
बादलों की गर्जन कहीं दूर
नाच रहे वन में मयूर
प्रकृति स्वयं को सजा रही
ऋतु सावन की सुहानी है
ये ऋतुओं की रानी है
‘अर्जुन’ को अत्यंत भा रही
अर्जुन सिंह नेगी
नारायण निवास, ग्राम व डाकघर कटगाँव
तहसील निचार जिला किन्नौर (हि० प्र०)
कविता में और अधिक परिपक्वता की आवश्यकता है.
मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद सर
जरुर प्रयास करूँगा