ग़ज़ल
याद उसकी जब भी आती है मुझे
जिंदगी हर पल रुलाती है मुझे ।
नींद आँखों में मिरे आती नहीं
याद तेरी थपथपाती है मुझे ।
जिसकी यादों में भुलाया दो जहाँ
कह के पागल वो बुलाती है मुझे ।
मैं शहर की भीड़ में खो सा गया
गाँव की गलियाँ बुलाती हैं मुझे ।
वस्ल में कटती हमारी जिंदगी
तिश्नगी पानी पिलाती है मुझे ।
भूल बैठा ‘धर्म’ का जो नाम तक
याद उसकी क्यूँ सताती है मुझे ।
— धर्म पाण्डेय
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
सुन्दर गजल