गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

याद उसकी जब भी आती है मुझे

जिंदगी हर पल रुलाती है मुझे ।

नींद आँखों में मिरे आती नहीं
याद तेरी थपथपाती है मुझे ।

जिसकी यादों में भुलाया दो जहाँ
कह के पागल वो बुलाती है मुझे ।

मैं शहर की भीड़ में खो सा गया
गाँव की गलियाँ बुलाती हैं मुझे ।

वस्ल में कटती हमारी जिंदगी
तिश्नगी पानी पिलाती है मुझे ।

भूल बैठा ‘धर्म’ का जो नाम तक
याद उसकी क्यूँ सताती है मुझे ।

धर्म पाण्डेय

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल !

  • अर्जुन सिंह नेगी

    सुन्दर गजल

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