सोच कर देखो साथ क्या जायेगा ?
सिकंदर महान ! यह नाम इतिहास में परिचय का मोहताज नहीं । यूनान का यह बादशाह कई देशों पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने अधीन करता हुआ भारत की सीमा पंजाब तक आ पहुंचा ।
यहाँ सतलुज के किनारे सिकंदर और राज़ा पुरु की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश राजा पुरु का पराभव हो गया और सिकंदर का भारत में प्रवेश हो गया । विश्वविजेता बनने का उसका स्वप्न अब लगभग साकार हो चुका था ।
उसे यूनान से कूच किये हुए काफी दिन हो चुके थे । अब वह जल्द से जल्द अपने वतन लौट जाना चाहता था । निरंतर यात्रा और लड़ाइयों से वह थक चुका था । धीरे-धीरे उसकी तबियत ख़राब होने लगी । हकीमों की पूरी फ़ौज उसकी तीमारदारी में लग गयी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । दिनोंदिन उसकी तबियत और बिगड़ती गयी । अपना अंतिम समय करीब जान उसने अपने प्रधान सेनापति सेल्यूकस को बुलाया और उसे अपनी अंतिम यात्रा से संबंधित कुछ आवश्यक निर्देश दिए ।
क्या थी सिकंदर की अंतिम इच्छा ? विश्वविजेता तो वह बन ही चुका था अब वह और क्या चाहता था ?
एक दिन अपने वतन लौटने की हसरत दिल में लिए ही सिकंदर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
दुःख की इस घड़ी में अब सिकंदर की अंतिम इच्छा पूरी करने का वक्त आ गया था । खजाने से सारी दौलत निकालकर जनाजे की राह में बिछा दी गई और लोगों को बताया गया ” देखो इस दुनिया को जीतनेवाला और सभी संपत्तियों का मालिक अपनी सारी संपत्ति देकर भी अपने लिए चंद साँसें नहीं खरीद सका । ऐसी दौलत किस काम की ? ”
दूसरी इच्छा के मुताबिक सिकंदर के दोनों खाली हाथ जनाजे से बाहर निकाल दिए गए और लोगों ने देखा ‘ एक विश्वविजेता अपनी अंतिम यात्रा पर जा रहा है और उसके दोनों हाथ खाली हैं । ‘
तीसरी इच्छा के मुताबिक जनाजे को सिर्फ उन्हीं हकीमों ने कंधा दिया, जो अंतिम दिनों में सिकंदर का इलाज कर रहे थे । इससे लोगों में यह सन्देश गया कि ‘ बड़े से बड़े हकीम भी मरने से नहीं बचा सकते । ‘
आज पैसे कमाने के लिए लोग पता नहीं क्या क्या करते हैं । अधिकांश लोग जिनकी बड़े बड़ों में गिनती होती है, इनके हर नैतिक या अनैतिक कार्य करते रहने के पीछे पैसा ही सबसे बड़ी वजह होती है ।
अच्छे उपदेश !
प्रिय विजयजी !आपको लेख अच्छा लगा यह पढ़कर मुझे हार्दिक प्रन्नता हुयी । आपके सार्थक कमेंट के लिए आपको ह्रदय से धन्यवाद् !
प्रिय राजकुमार भाई जी, आपकी इस नायाब रचना ने सचमुच बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया है. एक और नायाब और सार्थक रचना के लिए हार्दिक आभार.
श्रद्धेय बहनजी ! आपकी टिपण्णी ही मेरे लिए प्रेरणास्त्रोत है जो अतिरिक्त उर्जा देने का भी काम करती है । आपको रचना नायाब लगी इसके लिए और आपकी सार्थक टिपण्णी के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।