कविता : न आना अब लौटकर
न आना लौटकर कि…
रोशन हो चुका है मेरे
अंतस का कोना -कोना
बिन तुम्हारे ।
न आना लौटकर कि….
घुटन, तड़प, तन्हाई ,बेचैनी
विरह किवेदना का
कर आई पिंडदान
कि अब हँसने लगी हूँ खुलकर
बिन तुम्हारे ।
न आना लौटकर कि
दफन कर दिए
मैंने सारे प्रेम बीज
जो रोपे थे कभी तुम्हारे नाम के
न आना लौटकर
कि अब उग आए है वहाँ
नन्हे कोंपल
जिन पर लिखा है- नव जीवन ।
— पूनम
सुन्दर कविता पूनम जी
बहुत अच्छी कविता, पूनम जी !