कविता

कविता : पिंडदान

कभी -कभी लगता …है
जी भर रो लूँ
ताकि …..बहा ..सकूँ
आँसुओं संग तुम्हारी
मोहब्बत… की तपिश
और दे आँऊ तिलांजलि
तुम्हारी कड़वी  यादों को
किसी .. पिण्डदान की तरह ।

— पूनम

पूनम विश्वकर्मा

अध्यापिका, बीजापुर, छत्तीसगढ़

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