मित्रता
बरसों बाद,
जब सुदामा कृष्ण से
कुछ सकुचाए से
मिले, तो बस इतना ही
बोल पाए,
मैं नितांत ही विपन्नता से समपन्न,
एक साधारण सा……..
तुम्हारे इन अति वृहत् कोषों में,
सिर्फ,
अपने कुछ भाव,
कुछ शब्द,
कुछ ध्वनियाँ,
देना चाहूँ
तो क्या………….?
कृष्ण हाँ में मुस्करा दिए ।।
तब सुदामा विह्ल हो
कह उठे,
यदि हाँ,
तो मेरी संवेदनाओं के
समस्त स्वर,
आज सिर्फ तुम्हारे लिए ही
लयबद्ध होना चाहेंगे –
ताकि
सफलताओं के क्षितिजों तक,
कर्मठताओं के शिखरों तक,
संकल्पनाओं के साकारों तक,
वे तुम्हारा साथ दे सकें ।
अगर तुम चाहो……..?
कृष्ण फिर मुस्करा दिए ।।
सुन्दर सृजन!!!!!
धन्यवाद सर