रात
दिन के सभी पहर से ज्यादा
मुझे रात ही अच्छी लगती है
एक यही तो पहर है
जब वो होती है
और मैं होता हूँ
मेरे ख्यालों में
और शायद
मैं भी बसने लगता हूँ
उसके ख्यालों में
शायद यही वजह है
ये रात
हाँ.. रात ही अच्छी लगती है
जब सोचता हूँ
उसे अपनी कल्पना में
तो निर्विरोध वो पूरी समा जाती है
जैसे
वो खुद मुझमे मैं हो जाती है
क्योंकि
कोई अवरोध नही होता
दिन की परेशानियों का
मैं होता हूँ
और रात की कालिमा
और वो
शायद इसीलिए
मुझे रात ही अच्छी लगती है