कविता : भीगा सावन
बहुत भीगा सावन है रे
दिल को सुखा रख आँखों को भीगा गया
पल – पल जुदाई में तड़पती को
और मछली सा तडपा गया
अब सावन है तो हर अक्षर भीगेगा
इस गीले कागज़ को फिर कैसे निचोड़ेगा
यादों की छत पर तन्हाई जमकर बरसेगी
आँचल भिगोकर दामन सुखा रखेंगी
पुरवाई जब तेरा बदन छुकर आयेगी
मेरी साँसों को तेरी खुशबु से महकायेगी
पैरों में प्रीत की पायल बन्ध जायेगी
सावन के गीत जब कोई सखी गायेगी
मेहँदी से नाम तेरा जब सखी बनायेगी
प्रेम की धरा प्रीत रंग से रंग जायेगी
विरह की ये रातें आँखों ही में कट जायेंगी
भीगी धरती को और भिगाकर जायेगी
— परवीन चौधरी