फैशन
बच्चे, जवान और अब बूढ़े भी,
बड़े चाव से हिस्सा लेते है,
मन को लुभाती, दिल हर्षाती,
फैशन की दौड़ जिसे हम कहते हैं।
खर्चे की परवाह नहीं रहती इसमें,
मर्यादा की सीमा तोड़ सकते हैं।
एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में,
हया तक अपनी बेच सकते हैं
क्षणिक सुंदरता के भ्रम से भ्रमित,
कृत्रिम उपचार कराते हैं लोग।
अनमोल स्वास्थ्य को दांव पर लगा कर,
बेमौत मर रहें है लोग।
बराबरी का हक़ मांगने वाली औरत,
इसमें मर्दों से बहुत आगे निकल गयी।
परिवार, समाज और जिम्मेदारियों को तोड़,
निलाम संस्कृती को करने निकल गयी।
शालीनता की सीमा के अंतर्गत,
फैशन में कोई बुराई नहीं है।
अभद्रता का प्रदर्शन न हो तो,
सौम्य, सुन्दर फैशन में बुराई नहीं है।
समाज में व्याप्त बुराई की आग को,
अभद्र परिधानों से हवा न दें।
नारी शुचिता को जलने से बचाओ,
संस्कारों की ज्योति बुझने न दें।
— सुचिसंदीप, तिनसुकिया