ग़ज़ल
सजते हैं सारे सपने सजाकर तो देखो
नफरतों में यूँ प्यार मिलाकर तो देखो
नजरें मिलाने से यूँ प्यार होता नहीं है
कभी रुह से रुह को मिलाकर तो देखो
आपको देखते बुत सा बन जाता हूँ मैं
कभी रूह से मुझको हिलाकर तो देखो
प्यासा तो था पर अभी प्यासा ही हूँ मैं
कभी जुल्फों से मुझे पिलाकर तो देखो
क्या जानो आप इन बेदर्द रातों का दर्द
कभी ये रात तन्हा बिताकर तो देखो
जिन्दगानी की दौड़ में हारा सा पड़ा हूँ
कभी साथ मुझको जिताकर तो देखो
— बेख़बर देहलवी
जिन्दगानी के दौड़ में हारा सा पड़ा हूँ
कभी साथ मुझको जीताकर तो देखो !! वाह वाह , बहुत खूब .
bahut bahut aabhar aapka aadarniya