गौरी
गौरी तेरी पांव की पायल,
जब भी छम-छम बजती है,
तेरी चाल मधुर कानों में,
गजरा बनकर सजती है..!
गौरी तेरे कान का झुमका,
लटक बहुत इतराता है,
देख इसे खुद कामदेव भी,
अपना शीश झुकाता है…!
जब गौरी तू पहन के लहंगा,
चुनरी को सरकाती है,
लाखों हृदयों में चंचल सी,
लहर दौड़ ही जाती है…!
गौरी तेरे भाल पे बिंदी,
देख के सावन आता है,
इसके आगे चांद भी गौरी,
पानी भरके जाता है..!
गौरी तेरी कमर का सटका,
चटख रंग चमकीला है,
दिन में इसकी चमक देख के,
सूरज गीला गीला है..!
गौरी का शृंगार बड़ा ही,
अनुपम और विशाल है,
इसे देखकर खुद गौरी भी,
समझो मालामाल है…!
— एस.एन.प्रजापति