आजादी
तोड़ पराधीनता की बेड़ी नयी सुबह का आगाज हुआ उन्मुक्त गगन में चहचहाये पंछीं जन – मन में उल्लास का हास हुआ आता जब दिन पन्द्रह अगस्त खून मेरा खोल जाता है याद कर वो परतन्त्रता अंग – अंग में शोला भड़क जाता आजादी तो मिल गयी समस्याएँ अविराम खड़ी है सबसे पहले तो निपटना है आतंकवाद से जिसकी लड़ाई हम सबको लड़नी है सीमा पर तो अविरल तने जो जवाँ है सहारे उनके रात चैन से काट लेता हूँ पर जो भ्रष्टाचार जड़े देश में जमा रहा उसको कैसे मैं जड़ से मिटा पाऊँ सत्तर वर्ष हो गये चुके है देश आजाद हुए पर हालात सुधरते नजर नहीं आते है जनता के विकास के नाम पर यहाँ रोज स्व विकास करते नजर आते है सोन चिड़िया जो कहलाता देश मेरा पहले कंगाल नजर मुझको आता सारा पैसा स्विस बैंकों में जमा देश इसलिये खोखला नजर हमको आता है भाव तिरंगे हुए विलुप्त हर रोज चक्र तिरंगे का है विराम पर त्याग बलिदान तेंल बेंचतें मारकाट है अति चरम पर हरी -भरी है जो मेरी धरती युगों से ऊसर नजर आती है धरती पुत्र क्रन्दन करता रहता भारत माँ आँसू बहाती है आगाह करता हूँ एक बार फिर वतन बेचने वालों को गर न सुधरें जल्द ही सब लोग फिर परतन्त्र सब होगें बापू , नेहरू , भगत , आजाद सबके सपनों को तोड़ कर चूर किये हर रोज हम सब ही होंगें।
-डॉ मधु त्रिवेदी