दोहा मुक्तक………..
गंगा यमुना कह रहीं, याद करों तहजीब
हम कलकल बहते रहें, ढोते रहे तरकीब
अवरुद्ध हुई है चाल, चलूँ मैं शिथिल धार
सागर संग लहराऊँ, चलूँ किसके नशीब।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
गंगा यमुना कह रहीं, याद करों तहजीब
हम कलकल बहते रहें, ढोते रहे तरकीब
अवरुद्ध हुई है चाल, चलूँ मैं शिथिल धार
सागर संग लहराऊँ, चलूँ किसके नशीब।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी