कविता : मेरी मड़ई ने भींगे…
हे इन्द्र !
तू बरस
लेकिन इस शर्त के साथ
कि
मेरी मड़ई ने भींगे ।
महाजनी कर्ज भी
कहाँ चूका पाया अब तलक ।
जो पिछले साल
तेरे ही कारण
मेरे माथे पड़ गया ।
पहले से टेढ़ी कमर
कहाँ सीधी हो पायी ।
बिटिया का बियाह था
टाल दिया ।
टालता तो नहीं
मड़ई की मरम्मत !
फिर कहाँ रहते ?
जवान बिटिया, मेहरारू, बच्चे
कैसे गुजारते रात !
मेरी शर्त मान ले
ताकि कर सकूँ
बिटिया के हाथ पीले
सूकून से
इस साल ।