दोहा मुक्तक
शीर्षक- सहेली – आली, सखी,सखा, सहचरी, सजनी, सैरन्ध्री
वृन्दावन की सहचरी, नयन रम्यता बाग
आली झूम रही सखा, कोकिल कंठी राग
राधा सजनी विकल चित, नैन ढुरते श्याम
कासो जतन करूँ सखी, उड़ि उड़ि जाए काग॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
शीर्षक- सहेली – आली, सखी,सखा, सहचरी, सजनी, सैरन्ध्री
वृन्दावन की सहचरी, नयन रम्यता बाग
आली झूम रही सखा, कोकिल कंठी राग
राधा सजनी विकल चित, नैन ढुरते श्याम
कासो जतन करूँ सखी, उड़ि उड़ि जाए काग॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी