ग़ज़ल
जानता हूँ, आपदाएँ शेष हैं।
क्यों डरूँ,जब तक दुआएँ शेष हैं।
जन्म लेते ही रहेंगे राम-कृष्ण,
जब तलक धरती पे माँएँ शेष हैं।
कोशिशें तो आप सारी कर चुके,
अब तो केवल प्रार्थनाएँ शेष हैं।
सूर्य ढलने में अभी कुछ वक़्त है,
अब भी कुछ संभावनाएँ शेष हैं।
बोलिये! इस दौर में कैसे जिये?
जिसके दिल में भावनाएँ शेष हैं।
मंदिरों से देवता ग़ायब हुए,
मूर्तियों में आस्थाएँ शेष हैं।
बस्तियाँ तो बाढ़ में गुम हो गयीं,
हाँ! मगर, परियोजनाएँ शेष हैं।
© जय