कविता

घास

मैं धरती की बेटी हूँ मुझको कचरा मत समझो
समन्दर से लड़ जाऊँगी मुझको कतरा मत समझाे
मैं रजनी के आँसू को भी मोती कर देती हूँ
सूर्य निकलते प्रीतम के बाहों में भर देती हूँ

मेरा एक तिनका देख रावण भी डर जाता हैं
मेरा तिनका चुन चुन के पंछी नीड़ बनाता है
मेरा एक तिनका भी आग लगाने को है काफी
गर जला हो घर किसीका तो मांग रही हूँ माफी

मुझको अच्छा कहते हो जब रहती हूँ हरी हरी
सूखा देता चढ़ता सूरज तो कहते खरी खरी
मैं भी तो हूँ देशभक्त हर वीरों को पाले हैं
मेरे आँचल मे सोते भारत के रखवाले हैं

हरी हरी मुझको खाकर खच्चर भी तन जाता है
गर मुझको मानव खा ले महराणा बन जाता है

 अतुल बालाघाटी
9755740157

अतुल बालाघाटी

नाम- अतुल बालाघाटी शिक्षा- हायर सेकण्डरी ( शाला- परसवाड़ा, बालाघाट) तथा आई० टी० आई०( बालाघाट) बी. ए. हिन्दी उम्र- २३ वर्ष मो० 9755740157, 9009697759 e mail- [email protected] पता- ग्राम चीनी ,तह- परसवाड़ा ,जिला- बालाघाट (म प्र)

3 thoughts on “घास

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    वाह
    अति खूबसुरत भावाभिव्यक्ति

  • नीतू शर्मा

    बहुत खूब, सुन्दर सृजन

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