घास
मैं धरती की बेटी हूँ मुझको कचरा मत समझो
समन्दर से लड़ जाऊँगी मुझको कतरा मत समझाे
मैं रजनी के आँसू को भी मोती कर देती हूँ
सूर्य निकलते प्रीतम के बाहों में भर देती हूँ
मेरा एक तिनका देख रावण भी डर जाता हैं
मेरा तिनका चुन चुन के पंछी नीड़ बनाता है
मेरा एक तिनका भी आग लगाने को है काफी
गर जला हो घर किसीका तो मांग रही हूँ माफी
मुझको अच्छा कहते हो जब रहती हूँ हरी हरी
सूखा देता चढ़ता सूरज तो कहते खरी खरी
मैं भी तो हूँ देशभक्त हर वीरों को पाले हैं
मेरे आँचल मे सोते भारत के रखवाले हैं
हरी हरी मुझको खाकर खच्चर भी तन जाता है
गर मुझको मानव खा ले महराणा बन जाता है
— अतुल बालाघाटी
9755740157
बढ़िया !
वाह
अति खूबसुरत भावाभिव्यक्ति
बहुत खूब, सुन्दर सृजन