ग़ज़ल : हो जाए न तुमसे कहीं बदनाम तिरंगा
कुर्बानियों के बाद का अंजाम तिरंगा ।
हो जाए न तुमसे कहीं बदनाम तिरंगा ।।
सड़कों पे जुर्म की न दास्तान पूछिए ।
वो कर गया है देश का नीलाम तिरंगा ।।
बेचा वही ईमान जमाने में नाज़ से ।
जिनको लगा है मुफ़्त का ईनाम तिरंगा ।।
झंडे को बेचता कोई रोटी की ताक में ।
यह दौर नया है यहां बेदाम तिरंगा ।।
गो रक्षकों का हौसला तोडा है किसी ने ।
रोया लगा लगा के है इल्जाम तिरंगा ।।
सेना को पत्थरों से कुचलने में राज है ।
करते हों रोज रोज क्यूँ नाकाम तिरंगा ।।
कश्मीर गैर मुल्क से आजाद करा तू ।
तुझको दिया है हाथ में आवाम तिरंगा ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
बहुत शानदार ग़ज़ल !