गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : हो जाए न तुमसे कहीं बदनाम तिरंगा

कुर्बानियों  के  बाद  का  अंजाम  तिरंगा ।
हो  जाए  न  तुमसे कहीं बदनाम तिरंगा ।।

सड़कों   पे  जुर्म  की न दास्तान  पूछिए ।
वो  कर  गया है देश  का नीलाम तिरंगा ।।

बेचा  वही  ईमान  जमाने   में  नाज़  से ।
जिनको लगा है मुफ़्त का ईनाम तिरंगा ।।

झंडे  को  बेचता  कोई रोटी की ताक में ।
यह  दौर  नया  है  यहां   बेदाम  तिरंगा ।।

गो रक्षकों का हौसला तोडा है किसी ने ।
रोया  लगा  लगा के  है इल्जाम तिरंगा ।।

सेना को  पत्थरों  से कुचलने में राज है ।
करते हों रोज रोज क्यूँ  नाकाम तिरंगा ।।

कश्मीर  गैर  मुल्क  से  आजाद करा तू ।
तुझको दिया है हाथ में आवाम तिरंगा ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]

One thought on “ग़ज़ल : हो जाए न तुमसे कहीं बदनाम तिरंगा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

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