गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – वो हुक्मरान देखिए गमगीन बहुत हैं

अंदाज  कातिलों   के   बेहतरीन   बहुत  हैं ।
कुछ शख्स इस शहर में नामचीन बहुत हैं ।।

वो   खैर   मांगते   रहे   बुरहान  की   सदा।
उसकी  दुआ  में  पेश  हाज़रीन  बहुत  हैं ।।

आज़ाद  मीडिया  है अदावत  का  तर्जुमा ।
गुमराह  हर  खबर  पे  नाज़रीन  बहुत हैं ।।

जब भी जला वतन तो जश्ने रात आ गयी ।
दैरो  हरम  के  पास  मजहबीन  बहुत  हैं ।।

मिटते  हैं  वही  मुल्क  बड़े  जोर- शोर से ।
बैठे  जहाँ   घरों    में   फिदाईन  बहुत  हैं ।।

मेरी   बलूच  आसुओं  पे जब  नज़र गई ।
वो  हुक्मरान  देखिए  गमगीन  बहुत  हैं ।।

अब  हाल आस्तीन का न पूछिए  जनाब ।
जिन्दा  तमाम   सांप  क़ाईदीन  बहुत हैं ।।

– नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]

One thought on “ग़ज़ल – वो हुक्मरान देखिए गमगीन बहुत हैं

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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