कितने क्षण और हैं…
कितने क्षण और हैं
तेरी प्रतीक्षा केे,
रात्री की निद्रा पर
अंकुश सा लग गया है,
प्रेम के कारण मैं तुम्हें
अपने प्रत्यक्ष कभी-कभी
ऐसे महसूस करता हूँ
जैसे मेरे समक्ष वाकई
तुम बैठकर मुझसे
बातें करती हो|
- कवि योगेन्द्र जीनगर “यश”