गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बस  यही  तुम  सोच  लेना  हम धुआँ है,
हो  जहाँ  भी   संग  अपने  आसमाँ   है!

देखना  तुम  हम  अकेले  है  नहीं   अब,
राह  सच  की  है  तभी  तो  कारवाँ   है!

दिल ज़मीं पर हो  खुदा  तुम  जो हमेशा,
फिक्र ये किस बात की फिर हम कहाँ है!

बिन  बुलाए  हम  कहीं  जो  चल पड़े थे,
ये  नहीं  जाना  कि  वो किसका मकाँ है!

जब  फसाना  मिल  गया  चुप हो गए हैं,
ये नहीं मतलब कि हम “यश” बेजुबाँ है!

कवि योगेन्द्र जीनगर “यश”, राजसमंद, राजस्थान

योगेन्द्र जीनगर

मेरा नाम योगेन्द्र जीनगर "यश" S/o सुंदर लाल जीनगर है| मैं कांकरोली,राजसमंद (राजस्थान) का निवासी हूँ| मेरी उम्र 21 वर्ष है| वर्तमान में स्नातक में अध्ययनरत हूँ और मैंने बी.एस.टी.सी. अध्यापक प्रशिक्षण किया है| मेरी रूचि हिन्दी रचनाएँ लिखने में है|

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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