कविता

जन्माष्टमी का पर्व

जन्माष्टमी का पर्व याद दिलाता है
निराकार ब्रह्म के उस साकार रूप की
जिसने जीवन पर्यंत प्रेम दिया
जिस किसी ने उनकी ओर एक कदम बढ़ाया
उन्होंने सैंकड़ो कदम उसकी ओर बढाए
बिना शर्त कंठ से लगाया
काल कोठरी मे जन्म लिया
पहुंचे गोकुल नन्हे कान्हा
उफन उफन कर यमुना ने
प्रभु चरण छुकर आशीष लिया
गोकुल मे बीता बचपन उनका
मित्रों को खूब माखन खिलाया
प्रेम दिया और प्रेम पाया
राधा के संग राधा हो गए
गोपियों को खूब रिझाया
आत्मा रूपी गोपियों को
प्रेम कर भेदभाव रहित
आत्मिक प्रेम सिखाया
जहाँ न उंच नीच का भाव है
ना नर नारी का भेद
ना बड़े छोटे की बात
बस प्रेम ही प्रेम है
नटखट गोविन्द की शारारतें
माँ यशोदा और गोकुलवासियों को
स्वतः ही आकर्षित करती थीं
दुष्टों का संहार किया
मानवता को बचाने के लिए
धर्म की रक्षा के लिए
द्रोपदी को साडी देकर
नारी सम्मान की रक्षा की
अर्जुन को विषाद के समय
ज्ञान, कर्म, भक्ति का रहस्य
गीता के रूप मे खोल दिया
विश्वरूप के दर्शन देकर
अर्जुन को आत्मज्ञान दिया
हर मुश्किल घडी मे काम आये
भक्तों के वश मे रहकर
भक्ति की महता बताई
छतीस पकवान त्यागे
और बिना नमक का साग खाया
सुदामा को गले लगाया
उसके दुःख मे रोये प्रभु
और धन धन्य से परिपूर्ण किया
तुम ब्रह्म ही थे हमें शंका नहीं है
पर तुम तो याद आते हो
हम भूल जाते हैं पावन चरित्र तुम्हारा
भूल जाते हैं प्रेम करना
कर्मो से ज्यादा फल की चिंता होती है
भेद भाव की आदत हो गयी है
भले ही हम गीता पढते हैं पर
समदृष्टि -समभाव मे जीना नहीं चाहते
दुःख -सुख, मान –अपमान,
यश-अपयश हमें प्रभावित करते हैं
हे कृष्ण! क्या आज भी तुम साकार मे हो
कहीं हमारी नज़रें ही कंस और कौरवों की तरह
तुम्हे देख न पा रही हों
ये जन्माष्टमी का पर्व हमें तुम्हारे पावन चरित्र
को जीने की प्रेरणा दे
गीता को जीवन मे उतारने से ही हमें लाभ है
पर हम अल्प्बुधि इतना ही कर लें
जैसा प्रेम आज तुमसे कर रहे है
वैसा ही प्रेम सम्पूर्ण प्राणियों से करें
क्यूंकि तुम कण कण मे रहते हो

अर्जुन सिंह नेगी

नाम : अर्जुन सिंह नेगी पिता का नाम – श्री प्रताप सिंह नेगी जन्म तिथि : 25 मार्च 1987 शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (सिविल इंजीनियरिंग), ग्रामीण विकास मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। पेशा : एसजेवीएन लिमिटेड (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में सहायक प्रबन्धक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : सितम्बर, 2007 से (हिमप्रस्थ में प्रथम कविता प्रकाशित) l प्रकाशन का विवरण (समाचार पत्र व पत्रिकाएँ): दिव्य हिमाचल (समाचार पत्र), फोकस हिमाचल साप्ताहिक (मंडी,हि.प्र.), हिमाचल दस्तक (समाचार पत्र ), गिरिराज साप्ताहिक(शिमला), हिमप्रस्थ(शिमला), प्रगतिशील साहित्य (दिल्ली), एक नज़र (दिल्ली), एसजेवीएन(शिमला) की गृह राजभाषा पत्रिका “हिम शक्ति” जय विजय (दिल्ली), ककसाड, सुसंभाव्य, सृजन सरिता व स्थानीय पत्र- पत्रिकाओ मे समय- समय पर प्रकाशन, 5 साँझा काव्य संग्रह प्रकशित, वर्ष 2019 में अंतिका प्रकाशन दिल्ली से कविता संग्रह "मुझे उड़ना है" प्रकाशितl विधाएँ : कविता , लघुकथा , आलेख आदि प्रसारण : कवि सम्मेलनों में भागीदारी l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय –नारायण निवास, कटगाँव तहसील – निचार, जिला – किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) पिन – 172118 वर्तमान पता : निगमित सतर्कता विभाग , एसजेवीएन लिमिटेड, शक्ति सदन, शनान, शिमला , जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -171006 मोबाइल – 09418033874 ई - मेल :[email protected]

4 thoughts on “जन्माष्टमी का पर्व

  • राजकुमार कांदु

    अति उत्तम रचना के लिए बधाई स्वीकार करें । वाकई कण कण में भगवान है ऐसा मानते हैं तो इसी मान्यता के अनुरूप हमें सभीसे प्रेम करना चाहिए । इन्सान की नज़रों पर भीकंस और कौरवों की तरह से स्वार्थ नफ़रत और लालच का आवरण पड़ गया है जिसकी वजह से कण कण में व्याप्त भगवान नजर नहीं आ रहे ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय अर्जुन भाई जी, आपने सच लिखा है, कृष्ण ही प्रेम है और प्रेम ही कृष्ण. एक सटीक एवं सार्थक रचना के लिए आभार.

    • अर्जुन सिंह नेगी

      धन्यवाद बहन

    • अर्जुन सिंह नेगी

      धन्यवाद बहन

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