धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

जन्मोत्सव………

कान्हा के किरदार का कोई और न छोर,
इक पल वो जगदीश हैं, इक पल माखनचोर…

जब भी अंधेरा गहराता है, उजाला उसका समाधान बनकर आ जाता है। श्रीकृष्ण ऐसा ही उजाला है, जो हर व्यक्ति के भीतर रहकर उसे अर्जुन की भांति कर्म करने को प्रेरित करते है और उसे समस्याओँ के अंधकार से उबार लेते है।
जैसे कृष्ण ने गोपियों की मटकी तोड़ी थी, आओ हम भी अपना अहंकार तोड़ दें। जैसे कृष्ण ने मुरली से पुरे ब्रह्माण्ड को वश् में किया था, आओ हम भी अपने मधुर व्यवहार और वाणी से सबका मन जीत लें। जैसे कृष्ण ने माखन चुराया था, आओ हम भी दूसरों के दुःख चुरा लें। जैसे कृष्ण ने कंस का वध किया था, आओ हम भी जिद्दीपन, लोभ लालच जैसे विकारों का वध करें। जैसे कृष्ण ने सुदामा से मित्रता निभायी, आओ हम भी हर कण से प्रेमपूर्वक निभाते चलें। जैसे कृष्ण ने भागवत गीता रची, आओ हम भी उनके हर श्लोक पर अमल करने की कोशिश करें। करके देखो आसान है जिन्होनें पैदा होते ही संसार को मोह लिया… अपने को बंधन से मुक्त कर नन्द के घर पहुँचे.. नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की… जिन्होनें अपने को मारने आए राक्षसो को भी मोक्ष दे दिया… पूतना जो जहर पिलाने आई थी उसको भी वात्सल्य दिया… उसका पूरा दूध पी गए और उसको परमधाम पहुँचा दिया…. जिन्होने अपने साथियो को माखन खिलाया…. जिन्होनें अपनी बुद्धि विवेक से कालिया का मर्दन किया…. जिन्होनें गोचारण के लिए रो रो के पूरा नन्द गाँव हिला दिया…. जिन्होने अपनी बंसी की तान पर सबको झूमाँ दिया… जिन्होने कंस जैसे निर्दयी पापी का वध किया… जिन्होनें पांडवो की रक्षा की लाक्षाग्रह से… जिन्होने द्रोपदी का मान बचाया… जिन्होनें अपने राजकुमार भाई भतीजा सभी रिश्ते निभाए… जिन्होनें सखा भाव निभाया… जिन्होनें प्रेम भाव निभाया… जिन्होनें प्राणियो को जीने की कला सिखाई…. जिन्होनें गीता जैसा पावन ग्रन्थ कह डाला… जिन्होनें रासलीला रचाई… जिन्होने हमें जीना सिखाया… जिन्होनें हमें माधुर्य लावण्य आदि रसो का आनंद दिया… हमारे अध्यात्म के विराट आकाश में श्रीकृष्ण ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों व ऊंचाइयों पर जाकर भी गंभीर या उदास नहीं हैं। श्रीकृष्ण उस ज्योतिर्मयी लपट का नाम है जिसमें नृत्य है, गीत है, प्रीति है, समर्पण है, हास्य है, रास है, और है जरूरत पड़ने पर युद्ध का महास्वीकार। धर्म व सत्य के रक्षार्थ महायुद्ध का उद्घोष। एक हाथ में वेणु और दूसरे में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला दूसरा व्यक्तित्व नहीं हुआ संसार में। जो है भक्तो का भगवान् जो सुनते पुकार है जो जीवन का आधार है …”भगवान् श्रीकृष्ण” के मुख से ही “माँ श्री भगवत गीता” का उद्भव हुआ क्योंकि भगवान् यह जानते थे कि “कलयुग” में मनुष्य “भ्रष्टाचारि” हो जायेगा। इसीलिए उन्होंने हमें ग्यान के अनंत सागर “श्री भगवत गीता” को हमे दिया। जिसके अध्ययन मात्र से सभी पापों, इच्छाओं, दुखों, अादि भौतिक सुख व माया नष्ट हो जाती है।
………..परंतु दुखः इस बात का है।
आज मनुष्य भौतिक सुख को प्राप्त करने के लिए वह इतना व्यस्त हो गया है कि वह इस ग्यान से दूर हटता जा रहा है मनुष्य कुछ धन प्राप्त करते ही वह अभिमानी व स्वार्थी हो जाता है। फिर वह इन्सान तो दूर। ईश्ववर को भी कुछ नहीं समझता। परंतु ईश्वर इतने दयालु है अपने भक्तों से बहुत प्यार करते हैं। अगर अपना मन भक्ति में लग जाये तो कोई कामना ही नहीं रहेगी और फिर सब दुखः समाप्त हो जायेगे।
आज उन्ही करुणामयी ममतामयी प्रभुत्व सरकार व 16 कलाओं से परिपूर्ण “भगवानश्रीकृष्ण” से प्रार्थना और याचना हैं कि हमको “भारत की समस्याओं को पूरी दक्षता” पूर्वक निपटाने की “क्षमता” प्रदान करे और हम , अपने नाम के अनुरूप समस्त “भारत खंड” को नाथने में सफल सिद्ध हो “भगवान श्री कृष्ण” हमारे जीवन में सदैव खुशियों के दीप जलाये रखे !

..यदा यदा ही धर्मस्य , ग्लानिर्भवति भारत..
..अभ्युत्थानम अधर्मस्य , तदात्मानम सृजाम्यहम..
..परित्राणायाय साधुनाम , विनाशायच दुष्कृताम..
..धर्म सँस्थापनार्थाय , सँभावामि , युगे , युगे..

“प्रिय दोस्तो अगर जीवन में कभी समय मिले तो ‘श्री भगवत गीता जी’ का अनुसरण अवश्य करें”

— राज मलपाणी
शोरपुर(कर्नाटक)

राज मालपाणी ’राज’

नाम : राज मालपाणी जन्म : २५ / ०५ / १९७३ वृत्ति : व्यवसाय (टेक्स्टायल) मूल निवास : जोधपुर (राजस्थान) वर्तमान निवास : मालपाणी हाउस जैलाल स्ट्रीट,५-१-७३,शोरापुर-५८५२२४ यादगिरी ज़िल्हा ( कर्नाटक ) रूचि : पढ़ना, लिखना, गाने सुनना ईमेल : [email protected] मोबाइल : 8792 143 143

One thought on “जन्मोत्सव………

  • लीला तिवानी

    प्रिय राज भाई जी, अति सुंदर. एक सटीक एवं सार्थक रचना के लिए आभार.

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