चित्र अभिव्यक्ति आयोजन
चाहे काँटें पथर पग, तिक्ष्ण धार हथियार
पुष्प प्रेम सर्वत्र खिले, का करि सक तलवार
का करि सक तलवार, काटि नहि पाए चाहत
जुल्म-शितम हरषाय, अंकुरण करि करि आहत
कह गौतम चितलाय, प्रकृति की कोमल बांहें
आलिंगित करि जांय, कोमली पुष्पित चाहें।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी