राजनीति

कश्मीर की समस्या

कश्मीर की समस्या ऐसी समस्या है जिसके मूल में जाने का कोई प्रयास ही नहीं करता है। वैसे भी हम कश्मीर घाटी के मुट्ठी भर सुन्नी मुसलमानों के असंतोष को पूरे कश्मीर की समस्या मान बैठे हैं। जम्मू और कश्मीर के अधिकांश क्षेत्रों में कोई समस्या नहीं है। लद्दाख और जम्मू में तो बिल्कुल ही नहीं है। भारत के मुसलमानों की जिस मानसिकता के कारण पाकिस्तान का निर्माण हुआ वही मानसिकता घाटी के सुन्नी मुसलमानों में आज भी कायम है। वे भारत में रहना ही नहीं चाहते हैं। वे कश्मीर का पाकिस्तान में विलय चाहते हैं। वे दूसरे विकल्प के रूप में एक स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व देखना चाहते हैं। इसमें से कोई भी विकल्प भारत को मन्जूर नहीं हो सकता। भारत अपने अन्य राज्यों की तुलना में कश्मीर पर सबसे ज्यादा खर्च करता है। केन्द्र सरकार हमेशा इस मुगालते में रही है कि कश्मीर का विकास करके वे कश्मीरियों का दिल जीत लेंगे। लेकिन यह मृग मरीचिका ही सिद्ध हुई है। अगर कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से नहीं मिलतीं, तो कश्मीर में कोई समस्या ही नहीं होती। अगर हैदराबाद की सीमा पाकिस्तान से मिलती, तो हैदराबाद देश का दूसरा कश्मीर होता। जो मुसलमान पाकिस्तान के कट्टर समर्थक थे, वे देश के बंटवारे के साथ ही पाकिस्तान चले गए। जो मुसलमान भारत में रह गए, उनमें से अधिकांश का शरीर ही भारत में रहता है, आत्मा पाकिस्तान में बसती है। संभवत: भारत के एक और विभाजन की आशा में वे हिन्दुस्तान में रह गए। इसी सपने की पूर्ति के लिए यहां आतंकवादी हमले किए जाते हैं और सामान्य नागरिक संहिता लागू नहीं करने दी जाती। निम्नलिखित तरीके से कश्मीर समस्या का समाधान किया जा सकता है —
१. पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाय। इसे बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में बांट दिया जाय। सैन्य कार्यवाही करके गुलाम कश्मीर को भारत में मिला लिया जाय।
२. धारा ३७० खत्म करके भारतीयों को कश्मीर में बसने और उद्योग लगाने की अनुमति प्रदान की जाय। कश्मीरी पंडितों की वापसी हो और सेवानिवृत्त सैनिकों को विशेष सुविधा के साथ उस क्षेत्र में बसाया जाय। जनसंख्या का संतुलन हिन्दुओं के पक्ष में किए बिना वहां स्थाई शान्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। इतिहास गवाह है कि देश के जिस भाग में हिन्दू अल्पसंख्यक हुआ वह हिस्सा देश से कट गया या कटने की तैयारी में है।
३. देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाय
४. अगर उपर बताए गए विकल्पों को लागू करने में समय लगने या किसी अन्य प्रकार की दिक्कत हो तो लंका से सीख लेते हुए जाफ़ना मे तमिल समस्या के निराकरण का उपाय अपनाना चाहिए। कश्मीरियों के पास तो सिर्फ पत्थर है, जाफ़ना के तमिल उग्रवादियों के पास तो वायु सेना और जल सेना भी थी। वहां सैनिक अभियान चलाकर देशद्रोहियों का इस तरह सफ़या कर देना चाहिए ताकि कोई पाकिस्तान की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने का भी साहस न कर सके।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने से कुछ नहीं होनेवाला। एक दृढ़प्रतिज्ञ केन्द्र सरकार ही कड़े कदम उठाकर घाटी की समस्या का समाधान कर सकती है। कश्मीर में अलगाववाद का रोग इतना क्रोनिक है कि होमियोपैथी की मीठी गोलियों से निदान असंभव है। आपरेशन करना ही पड़ेगा। संयोग से नरेन्द्र मोदी के रूप में देश ने एक दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रधान मंत्री पाया है। उनसे देशवासियों को काफी उम्मीदें हैं।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

2 thoughts on “कश्मीर की समस्या

  • विजय कुमार सिंघल

    विचारणीय लेख.

  • विजय कुमार सिंघल

    विचारणीय लेख.

Comments are closed.