लघुकथा

लघु कथा : ढलती शाम और डूबता सूरज

ढलती शाम और डूबता सूरज, वही स्थान, वही समय, वही दृश्य ।  नदी के किनारे एक ऊंचे टीले के छोर पर एक पत्थर और उसपर सफ़ेद मुलायम ऊन के बन्डल सा उकडूं बैठा-खरगोश, लाल-लाल अनार के दाने की तरह चमकती हुई आंखें ।  सफ़ेद शरीर पर एक धब्बा, चन्द्रमा पर कलंक की भांति शोभायमान हो रहा था।  चारों ओर की आहट लेते हुए सतर्क खड़े कान और पलक झपकते ही हवा हो जाने को तैयार टांगें । पत्तों की थोड़ी सी भी खड़खड़ाहट होते ही खड़े हो जाने की प्रवृत्ति ।  वह कभी सूंघकर इधर देखता कभी उधर।  बारी-बारी से चारों ओर सूंघकर शायद किसी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो ।
मैं पास के ही पेड़ की ओट में खड़ा हुआ यह दृश्य देख रहा हूं। अब खरगोश ने एक ओर को देखकर सूंघा, कान खड़े किये और एक विशिष्ट आवाज निकाली ।  कुछ देर पश्चात ही एक अन्य खरगोश उसी दिशा से आता हुआ दिखाई दिया।  दोनों की आंखों मैं एक विचित्र चमक उत्पन्न हुई और आतुरता का स्थान प्रसन्नता ने ले लिया ।  आपस में उछल-उछल कर कुलांचें भरते हुए, खेलता हुआ जोड़ा अत्यन्त सुन्दर प्रतीत हो रहा था।  धत्तेरे की…! अचानक बडे जोर की छींक आई,  दोनों खरगोश पलक झपकते ही नौ दो ग्यारह …।
दूसरे दिन ,प्रयोगात्मक कार्य के कारण कुछ देर हो गई है ।  दूर से देखता हूं दोनों खरगोश पत्थर पर आसीन हैं,  शिव-पार्वती की तरह ।  वृक्ष के समीप पहुंचते ही पैरों से पत्तों के दबने की आहट को भी वे न भूल सके और हवा पर सवार होकर उड़ लिये। कई दिन यह क्रम चलता रहा, मैं देर से पहुंचता और वे जरा सी आहट पर हवा हो जाते ।
प्रकृति की सुन्दरता किसका ह्रदय परिवर्तन नहीं कर देती।  प्रारम्भ में, मैं उन्हें ज़िन्दा या मृत पकड़ कर प्रयोगशाला में उपयोग करने की सोचता था; परन्तु यह नैसर्गिक सौन्दर्य मेरे ऊपर पूरी तरह हावी हो गया है।  प्रकृति के इन सुकुमार जीवों की भोली-भाली मूर्ति ने मेरा ह्रदय परिवर्तन कर दिया है,  अत: अब मैं इनके सौन्दर्य से द्विगुणित होती प्रकृति की सुछवि का पान करने आता हूं।
आज रविवार है, मैं यहाँ समय से पहले ही छिपा हूं;  प्रकृति की नैसर्गिक आभा के अतुलनीय रूप का निरीक्षण करते हुए अपने- अपने नीड़ों को लौटते हुए खगवृन्दों को देख रहा हूं सर्वत्र शान्ति है , केवल नदी का कल-कल निनाद व पक्षियों का कलरव ही सुनाई देता है|  वही दृश्य -ढलती शाम और डूबता सूरज | खरगोश का जोड़ा आज साथ-साथ आया है|  पत्थर पर एक साथ बैठे हुए उनकी भोली-भाली मन मोहक छवि कैलाश पर्वत की उपत्यका पर आसीन शिव-पार्वती की याद दिलाती है, मैं कल्पना लोक में डूबता जा रहा हूँ ……
धायं -धायं …,एक चीख ..और सब कुछ समाप्त;  सहसा पार्श्व से किसी न आग उगल दी एक करुण चीख के साथ शिवजी पत्थर से उलट कर नदी की धार में समा गए और पार्वती जी ने भी एक लम्बी चीख के साथ धारा में छलांग लगा दी |
मेरे पैर वहीं जड़ हो जाते हैं मन एक करुणामयी भाव में भरकर वैराग्य की स्थिति में आकर संसार की असारता पर विमर्श करने लगता है, क्रोध मिश्रित करुणा विगलित भाव सोचने लगता है, कि किंचित यही अनुभूति आदि- कवि को हुई होगी जब उनके मुख से प्रथम श्लोक उद्भूत हुआ होगा—–
मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम शाश्वती समां
       यत क्रोंच मिथुनादेकम वधी   काम मोहितं|”

डॉ श्याम गुप्त

डॉ. श्याम गुप्त

नाम-- डा श्याम गुप्त जन्म---१० नवम्बर, १९४४ ई. पिता—स्व.श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता, माता—स्व.श्रीमती रामभेजीदेवी, पत्नी—सुषमा गुप्ता,एम्ए (हि.) जन्म स्थान—मिढाकुर, जि. आगरा, उ.प्र. . भारत शिक्षा—एम.बी.,बी.एस., एम.एस.(शल्य) व्यवसाय- डा एस बी गुप्ता एम् बी बी एस, एम् एस ( शल्य) , चिकित्सक (शल्य)-उ.रे.चिकित्सालय, लखनऊ से वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक पद से सेवा निवृत । साहित्यिक गतिविधियां-विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध, काव्य की सभी विधाओं—गीत, अगीत, गद्य निबंध, कथा, आलेख , समीक्षा आदि में लेखन। इन्टर्नेट पत्रिकाओं में लेखन प्रकाशित कृतियाँ -- १. काव्य दूत, २. काव्य निर्झरिणी ३. काव्य मुक्तामृत (काव्य सन्ग्रह) ४. सृष्टि –अगीत विधा महाकाव्य ५.प्रेम काव्य-गीति विधा महाकाव्य ६. शूर्पणखा महाकाव्य, ७. इन्द्रधनुष उपन्यास..८. अगीत साहित्य दर्पण..अगीत कविता का छंद विधान ..९.ब्रज बांसुरी ..ब्रज भाषा में विभिन्न काव्य विधाओं की रचनाओं का संग्रह ... शीघ्र प्रकाश्य- तुम तुम और तुम (गीत-सन्ग्रह), व गज़ल सन्ग्रह, कथा संग्रह । मेरे ब्लोग्स( इन्टर्नेट-चिट्ठे)—श्याम स्मृति (http://shyamthot.blogspot.com) , साहित्य श्याम (http://saahityshyam.blogspot.com) , अगीतायन, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान, छिद्रान्वेषी एवं http://vijaanaati-vijaanaati-science सम्मान आदि—१.न.रा.का.स.,राजभाषा विभाग,(उ प्र) द्वारा राजभाषा सम्मान,(काव्यदूत व काव्य-निर्झरिणी हेतु). २.अभियान जबलपुर संस्था (म.प्र.) द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान( महाकाव्य ‘सृष्टि’ हेतु ३.विन्ध्यवासिनी हिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ स्मृति सम्मान, ४. अ.भा.अगीत परिषद द्वारा अगीत-विधा महाकाव्य सम्मान(महाकाव्य सृष्टि हेतु) ५.’सृजन’’ संस्था लखनऊ द्वारा महाकवि सम्मान एवं सृजन-साधना वरिष्ठ कवि सम्मान. ६.शिक्षा साहित्य व कला विकास समिति,श्रावस्ती द्वारा श्री ब्रज बहादुर पांडे स्मृति सम्मान ७.अ.भा.साहित्य संगम, उदयपुर द्वारा राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान ( शूर्पणखा-काव्य-उपन्यास हेतु)८ .बिसारिया शिक्षा एवं सेवा समिति, लखनऊ द्वारा ‘अमृत-पुत्र पदक ९. कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगालूरू द्वारा सारस्वत सम्मान(इन्द्रधनुष –उपन्यास हेतु) १०..विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान,इलाहाबाद द्वारा ‘विहिसा-अलंकरण’-२०१२....आदि..

3 thoughts on “लघु कथा : ढलती शाम और डूबता सूरज

  • विजय कुमार सिंघल

    मार्मिक लघुकथा !

  • विजय कुमार सिंघल

    मार्मिक लघुकथा !

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