गज़ल : आतंक की फसल
टूट्ते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है
.हैरान सी नज़रों में ये अक्स यहां क्यों है।
दौडता नज़र आये इन्सान यहां हरदम
इक ज़द्दो ज़हद में हर शख्श यहां क्यों है।
वो हंसते हुए गुलसन चेहरे कहां गये
हर चेहरे पै खोफ़ का ये नक्श यहां क्यों है।
गुलज़ार रहते थे सदा गली बाग चौराहे
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है।
तुलसी सूर गालिव की ज़मीं ये श्याम
आतन्क की फ़सल सरसव्ज यहां क्यों है॥
— डा श्याम गुप्त