कारण कार्य व प्रभाव गीत ——कितने ज्ञान दीप जल उठते
मेरे द्वारा सृजित, गीत की एक नवीन -रचना-विधा -कृति में ..जिसे मैं ….‘कारण कार्य व प्रभाव गीत‘ कहता हूँ ….इसमें कथ्य -विशेष का विभिन्न भावों से… कारण उस पर कार्य व उसका प्रभाव वर्णित किया जाता है …. इस छः पंक्तियों के प्रत्येक पद या बंद के गीत में प्रथम दो पंक्तियों में मूल विषय-भाव के कार्य या कारण को दिया जाता है तत्पश्चात अन्य चार पंक्तियों में उसके प्रभाव का वर्णन किया जाता है | अंतिम पंक्ति प्रत्येक बंद में वही रहती है गीत की टेक की भांति | गीत के पदों या बन्दों की संख्या का कोई बंधन नहीं होता | प्रायः गीत के उसी मूल-भाव-कथ्य को विभिन्न बन्दों में पृथक-पृथक रस-निष्पत्ति द्वारा वर्णित किया जा सकता है |
शिक्षक दिवस पर—–
गुरु की वरदहस्त छाया से,
अँधेरे भ्रम के कट जाते |
अन्धकार अज्ञान असत के,
मेघ स्वयं ही छंट जाते हैं |
मन में ज्ञानालोक बहाने,
कितने ज्ञानदीप जल उठते ||
माँ की ममता की छाया जब,
सदा हमारे संग रहती है |
प्रथम गुरु की शिक्षाएं बन,
संस्कार मन रच बस जाते |
जीवन का हर तमस मिटाने,
कितने ज्ञानदीप जल उठते ||
पितृ भक्ति के ज्ञान भाव जब,
तन मन में रच बस जाते हैं|
जग की कठिन राह सुलझाने,
कितने भाव ह्रदय बस जाते |
ज्ञान कर्म और नीति धर्म युत,
कितने ज्ञानदीप जल उठते ||
सत्य अहिंसा प्रेम भाव के,
संस्कार जब मिल जाते हैं|
मानव-मानव विश्व-प्रेम को,
और परमार्थ राह अपनाए |
जन जन मन में प्रेम रीति के,
कितने ज्ञानदीप जल उठते ||
द्वेष द्वंद्व अन्याय अनय के,
घन जब मन से छंट जाते हैं|
सुन्दर शिवं सत्य मन होता ,
कलुष भाव मन से मिट जाते |
निर्मल मन में निर्मल शशि सम,
कितने ज्ञानदीप जल उठते ||
— डा श्याम गुप्त