गणेश वंदना
हे गजवदन गणेश विनायक,भक्ति मेरी स्वीकारें
मेरा कोई नहीं है अपना,जग में सिवा तुम्हारे।
तुम बुद्धिदाता कहलाते
कष्ट हरण कर खुशियाँ लाते
बीच भंवर में नाव फंसी,तुम ही लगाओ किनारे
माया -मोह में मन भरमाया
बैर-झूठ का फैला साया
मुक्त करो इस दुर्गम पथ से,मेरा जनम संवारें
नैनन बसी तुम्हारी सूरत
शक्ति देती पावन मूरत
यह वरदान हमें तुम देना,हर पल नाम उचारें
हे गजवदन गणेश विनायक,भक्ति मेरी स्वीकारें।
— डॉ अमृता शुक्ला
प्रिय सखी अमृताजी, अति सुंदर भावपूर्ण के लिए आभार.