जीवात्मा की पांच अवस्थाओं पर विचार
ओ३म्
शांकर भाष्य-लोचन के लेखक पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय पुस्तक के पहले अध्याय ‘स्वप्न की मीमांसा और उसका शांकर मत में स्थान’ में लिखते हैं कि शास्त्रकारों ने जीव की पांच अवस्थायें मानी है। जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय और मोक्ष। इनके अतिरिक्त छठी अवस्था अभी तक कल्पना में नहीं आई। तुरीय या समाधि अवस्था केवल योगियों को प्राप्त है। मोक्ष संसारित्व से परे की चीज है। परन्तु शेष तीन अवस्थाओं से सभी प्राणी भली भांति परिचित हैं जागना, स्वप्न देखना और गहरी नींद सोना।
विद्वान लेखक की उक्त पंक्तियां पढ़कर हमारे मन में विचार आया कि मृत्यु के बाद और पुनर्जन्म से पूर्व की अवस्था भी क्या इन तीन अवस्थाओं में सम्मिलित है? इसके अतिरिक्त भावी सन्तान का जीवात्मा पिता के शरीर व माता के गर्भ में आता है। इसके जन्म से पूर्व इसकी 9 व 10 माह तक जो अवस्था होती है वह उपर्युक्त तीन अवस्थाओं से भिन्न होती है अथवा वह उन्हीं तीन अवस्थाओं में ही परिगणित होती है। एक अवस्था और हमारे ध्यान में आई और वह है सृष्टि की प्रलयावस्था में जीवों की स्थिति वा अवस्था। विचार करने पर हमें लगता है कि मृत्यु के बाद माता के गर्भ में प्रवेश तक व प्रलय की अवस्थाओं को हम शायद सुषुप्ति अवस्था में मान सकते हैं परन्तु विद्वानों से इसका समाधान अपेक्षित प्रतीत होता है? वृक्ष आदि स्थावर योनियों पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि इन वृक्षों में भी जीवात्मा होता है। इनमें भी क्या जीव सुषुप्ति अवस्था में ही होता है, स्वप्नावस्था में अथवा किसी अन्य अवस्था में? इसका समाधान भी अपेक्षित है? पक्ष विपक्ष में कुछ विशेष युक्तियां व तर्क न होने पर इन्हें भी सुषुप्ति अवस्था में माना जा सकता है, ऐसा हमें लगता है।
अब जीवात्मा की जन्म ग्रहण व धारण हेतु पिता के शरीर व माता के गर्भ में निवास की अवस्था को जागृत माने व अन्य दो स्वप्न व सुषुप्ति, इसका समाधान अपेक्षित है। हमें लगता है कि गर्भ में जागृत, स्वप्न व सुषुप्ति, यह तीनों ही अवस्थायें कुछ कुछ होती हैं जैसे की जीवित मनुष्य व प्राणियों में होती हैं। परन्तु व्यवहार की दृष्टि से यह जीवित मनुष्यों से कुछ भिन्न व पुथक एवं देश, काल व परिस्थिति के अनुसार होती हैं।
हम आर्य समाज के विद्वानों व विज्ञ स्वाध्यायशील व अनुभवी पाठकों से इस विषय में अपने अनुभवों से हमें कृतार्थ करने का निवेदन करते हैं।
पाठकों के ज्ञानार्थ हम यह सूचित करते हैं कि ‘‘शांकर–भाष्यालोचन” पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय, एम.ए. की विख्यात कृति है जो काफी समय से अप्राप्य थी। आर्यसमाज-शहर, बड़ा बाजार, सोनीपत ने इसे अप्रैल, 2016 में प्रकाशित कर दिया है। 312 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य रु. 150.00 है। प्रकाशक ने यह पुस्तक अपने आर्यसमाज की शताब्दी के अवसर पर ‘शताब्दी स्मृति ग्रन्थमाला प्रकाशन योजना’ के अन्तर्गत प्रकाशित की है। अन्य भी 8 ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया है।
–मनमोहन कुमार आर्य
विचारणीय लेख. इसमें जिस पुस्तक का उल्लेख किया गया है वह पठनीय और मननीय लगती है.
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद् आदरणीय श्री विजय जी। इस पुस्तक का नाम शंकर भाष्यलोचन है। लगभग 50 वर्ष इसका प्रकाशन आर्यसमाज बड़ा बाजार, सोनीपत ने अपने आर्यसमाज की शताब्दी के अवसर पर किया है। सादर।
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद् आदरणीय श्री विजय जी। इस पुस्तक का नाम शंकर भाष्यलोचन है। लगभग 50 वर्ष इसका प्रकाशन आर्यसमाज बड़ा बाजार, सोनीपत ने अपने आर्यसमाज की शताब्दी के अवसर पर किया है। सादर।
विचारणीय लेख. इसमें जिस पुस्तक का उल्लेख किया गया है वह पठनीय और मननीय लगती है.