लघुकथा – दिवा स्वप्न
मम्मी के मंगल-सूत्र , दादाजी की ड्रेस , भाई के मोबाइल और सेठजी के तकाजे के बीच रीना ने कहा, ” बापू ! मेरी १२ वी बोर्ड की परीक्षा की फीस जमा हो जाएगी ना ?”
” हाँ , रीना बिटिया ! देखता हूँ ,” बापू ने बेमौसम बरबाद हुई फसल के राहत के चैक को लिफाफे को खोलते हुए कहा , ” देखता हूँ ,कितने रूपए का मुआवजा मिला है ?”
दूसरे ही क्षण , ” धत्त तेरी की “, कहते हुए बापू ने 750 रूपए का चैक नीचे जमीन पर फेक कर अपना माथा पकड़ लिया.
करारी लघुकथा ! यह आज के शासन के मुंह पर एक तमाचा है.
आदरनीय विजय कुमार सिंघल जी शुक्रिया आप का.
करारी लघुकथा ! यह आज के शासन के मुंह पर एक तमाचा है.
यह तो ७५० रूपए मिल ही गिया , यह भी शुकर ही समझो किः इन सात सौ रुपयों को लेने के लिए हज़ार रुयय खर्चने नहीं पढ़े . पंजाबी में कहता हूँ ,” फिट्टे मुंह ऐसे निजाम को, जिस में अन्दाता ही भूखों मर रहा है “
आदरनीय गुरमेल सिंह जी आप का अमूल्य और अतुल्य मतांकन प्राप्त कर मुझे अपार ख़ुशी हुई . शुक्रिया आप का .
बहुत खूब आदरणीय ! सरकारी राहत के नाम पर गरीबों की गरीबी का मजाक ही उड़ाया जाता है ।
शुक्रिया आदरनीय राजकुमार जी . आप ने लघुकथा का समर्थन किया.