नशे का अंध कूप (कविता)
शहर और गाँव की गलियों मे
मिल जाते हैं नौजवान
सिगरेट का दुआं उड़ाते
चरस अफीम गांजा, हो गए हैं आम नशे
अब तो चलती हैं, नशे की गोलियां, इंजेक्शन,
अन्य मादक द्रव्य और सूंगने के नशे
अपने रक्त मे नशे की मिलावट कर
रहते हैं मदहोश
दिन दुनिया से बेखबर, चिंतामुक्त
नशे के अंध कूप मे
इस देश का नौजवान
भूलता जा रहा है अपनी शक्तियों को
खो रहा है स्वाभिमान
तन-मन-धन से होता जा रहा
निर्बल और रोगी
भरी जवानी मे नशे के लिए कांपता बदन
दिखाता है उसकी लाचारी
और नशे की गुलामी
ऐसी गुलामी जो करवाती है कई अपराध
शक्ति जो सृजन मे सहायक होती
बन जाती विध्वंस का कारण
जो हाथ चरण छूने के लिए उठने थे
नहीं कतराते माता पिता की मारपीट से
चोरी, गुंडागर्दी, यौन अपराध
हर बुरा काम करवाती है नशे की गुलामी
माता पिता को कहाँ मालूम
उनके लाडले घर से निकले तो स्कूल-कॉलेज
पर खो गए नशे के गहन गर्त मे
जिस आज़ाद देश का युवा
ऐसी गुलामी की जंजीरों मे जकड़ा हो
इससे बड़ी क्षति नहीं हो सकती देश की
ओ भारत के युवाऑ!
छोड़ दो ये गुलाम करने वाले नशे
पहचानो अपने अन्दर की शक्ति को
तुम गुलामी के लिए नहीं बने हो
बने हो आज़ाद रहने के लिए
ऐसी आजादी जिसमे ज़िम्मेदारी की कैद भी हो
आओ नशा करें, जो मेरे तुम्हारे सबके लिए
बेहतर और सुखद हो
देश के लिए कुछ कर गुजरने का नशा
बेहतर इंसान बनने का नशा
जो मिसाल हो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी
अर्जुन सिंह नेगी
नारायण निवास, कटगाँव, तहसील निचार
जिला किन्नौर हिमाचल प्रदेश – 172118
सुन्दर रचना । नशे की गुलामी छोड़कर देश के लिए कुछ कर गुजरने का नशा ही श्रेयस्कर है । अच्छा सन्देश !
सुन्दर रचना । नशे की गुलामी छोड़कर देश के लिए कुछ कर गुजरने का नशा ही श्रेयस्कर है । अच्छा सन्देश !