स्वच्छ भारत अभियान को सफल करना प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य
ओ३म्
धर्म व संस्कृति की दृष्टि से भारत संसार का सबसे प्राचीन देश है। धर्म व संस्कृति में आध्यात्मिक उन्नति के साथ भौतिक उन्नति सम्मिलित होती है। महर्षि पतंजलि के योग दर्शन में आध्यात्मिक व धार्मिक मनुष्यों को 5 यम और 5 नियमों का पालन करने का विधान किया गया है। 5 नियम हैं शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान। प्रथम स्थान पर शौच शब्द है जिसका अर्थ होता कि मनुष्य के जीवन में आन्तरिक और बाहरी स्वच्छता। यदि मनुष्य का शरीर अन्दर व बाहर से पवित्र व स्चच्छ नहीं होगा तो सबसे अन्य विषयों सहित सबसे सूक्ष्म विषय व सत्ता ईश्वर को जाना नहीं जा सकता। शौच व स्वच्छता का पालन करने के साथ अध्ययन आदि करने से मनुष्य संसार के प्रत्येक विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और अस्वच्छता के संस्कार, प्रकृति व स्वभाव होने पर वह शारीरिक व बौद्धिक उन्नति नहीं कर सकता। बौद्धिक उन्नति के लिए स्वच्छता के साथ स्वाध्याय अर्थात् सच्चे ज्ञान की पुस्तकों का अध्ययन भी अनिवार्य है। आजकल यह ज्ञान मनुष्य स्कूलों व विद्यालयों में अपने गुरुओं व पुस्तकों से प्राप्त करते हैं। प्राचीन काल में यह ज्ञान गुरुकुल रूपी विद्यालयों में आचार्यों व गुरुओं के सान्निध्य में रहकर भिन्न भिन्न विषयों के शास्त्रीय ग्रन्थों से करते थे जिसमें सभी भौतिक व आध्यात्मिक विषय सम्मिलित होते थे।
प्रत्येक मनुष्य को अपने शरीर की बाहर व अन्दर से तो शुद्धि करनी ही होती है। इसके अन्तर्गत बाहरी शुद्धि में शरीर की स्नान आदि द्वारा शुद्धि के साथ अपना निवास व प्रत्येक वह स्थान होता है जहां वह विचरण करता है, आता-जाता है व काम-धन्धा करता है। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो पर्यावरण में विकार उत्पन्न होगा जिससे उसका शरीर अस्वस्थ हो सकता है। पर्यावरण में हमारी प्राण वायु आक्सीन और जल तथा पृथिवी के सभी पदार्थ सम्मिलित होते हैं। समस्त प्राणी जगत जिसमें पशु व पक्षी आदि भी सम्मिलित हैं, हमारे पर्यावरण का हिस्सा है। अतः हमें शरीर से तो स्वच्छ व स्वस्थ रहना ही है इसके साथ हम जहां भी जायें तो हमें अपने चारों ओर स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिये। यदि हम वातावरण में अस्वच्छता उत्पन्न करेंगे तो हम अपनी प्रकृति व सृष्टि के अपराधी बनते हैं और दूसरों को स्वच्छता का उपदेश करने का हमें कोई नैतिक अधिकार नहीं रहता। यदि हम स्वयं स्वच्छ रहते है और कहीं अस्वच्छता व गन्दगी नहीं करते तो इससे हमें उपदेश देने की भी आवश्यकता नहीं होती। दूसरे लोग हमसे व हमारे कार्य व व्यवहार से प्रभावित होकर स्वयं उसे ग्रहण करते हैं। अतः हमें व सभी लोगों को अपने निजी, सामाजिक व सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता के नियमों का पूर्णतः पालन करना चाहिये जिससे हमारा समस्त पर्यावरण स्वच्छ व शुद्ध हो और इसके परिणामस्वरूप हम व अन्य सभी सुखी व स्वस्थ रह सकें।
स्वच्छता का यह भी आशय है कि हम जिन पदार्थों का घर में व बाहर उपयोग करते हैं उससे उत्पन्न कचरे को यत्र-तत्र न फेंके व बिखेरें अपितु उन्हें एक निश्चित स्थान पर ही फेंके। ऐसा करने से सर्वत्र स्वच्छता दिखाई देने से मन में प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है जिससे मनुष्य सुख का अनुभव करता है। इस सम्बन्ध में यदि हम अपने देश वासियों को देखें तो वह स्वच्छता के नियमों का पालन करते हुए दिखाई नहीं देते हैं। रेलगाड़ी हो या बस अड्डा या बाजार, हम उपयोग की जहां से जो भी चीज लेते हैं उसका उपयोग कर उसके कचरे को प्रायः वहीं अविवेकपूर्वक अस्थान में आसपास फेंक देते हैं। यह आदत अच्छी आदत न होकर बुरी आदत होती है। कचरे को हमें व सभी मनुष्यों को निर्धारित व निश्चित स्थान पर ही फेंकना चाहिये और उसके लिए हमें अमनी आदत व स्वभाव में परिवर्तन करना चाहिये और इसके बारे में अपने व्यवहार व उपदेश दोनों के माध्यम से अपने परिचित बन्धुओं को प्रेरित करना चाहिये। यदि हम ऐसा करते हैं तो इससे भी स्वच्छ भारत के अभियान को बढ़ावा मिलता है। यदि हम स्वच्छता से जुड़ी छोटी-छोटी बातों को जान लें और उसका पालन करें तो इससे न केवल हमें व अन्य लोगों को लाभ होगा अपितु तभी हम सभ्य मनुष्य कहलाने के अधिकारी हो सकेंगे।
आजकल देखने में आता है कि लोग पोलीथीन व अन्य प्रकार के थैलों व थैलियों का प्रयोग करते हैं जिसे वह आवश्यकता न होने पर जहां तहां फेंक देते हैं। इससे वातावरण तो अस्वच्छ वा दूषित होता ही है अपितु उसके परिणाम भी भयंकर होते हैं। प्रायः देखा गया है कि सड़कों पर विचरण करने वाली गायें उन्हें खां लेती हैं जो उनके उदर में जाकर उनकी मृत्यु तक का कारण बनता हैं। इसी प्रकार से इन पोलीथीन की थैलियों को हमारे सफाई कर्मचारी भी कई बार आस पास की नालियों व ड्रेनों में डाल देते हैं जिससे वर्षां होने पर जल की निकासी नहीं हो पाती और सड़कों पर पानी भर जाता है जिस कारण देश की राजधानी सहित अनेक स्थानों पर जल भराव हो जाता है और वाहनों तथा पैदल यात्रियों की आवाजाही में बाधा आती है। इसका एक ही उपाय है कि हम नालियों व ड्रेनेज सिस्टम को कचरे से मुक्त रखें तभी इन व ऐसी अनेक समस्याओं से बचा जा सकता है।
स्वच्छ भारत अभियान में हमें अपने घर, गली मोहल्ले व उसकी सड़कों सहित रेलगाड़ी व बस अड्डे सहित सभी सड़कों आदि को तो कचरे से मुक्त रखना ही है इसके अतिरिक्त हमें यह भी ध्यान देना है कि हम ऐसे कोई काम न करें जिससे हमारी वायु व जल आदि में बिगाड़ व विकार उत्पन्न होता है। यदि हमें वायु व जल शुद्ध नहीं मिलेंगे तो हम स्वस्थ व प्रसन्न नहीं रह सकते। आजकल वायु व जल में भी अनेक प्रकार से प्रदुषण होता है। वायु में वाहनों व बड़े बड़े उद्योगों आदि से तो प्रदुषण होता ही है, इसके साथ हम अपने शरीर से जो प्रश्वास छोड़ते हैं उससे वायु मण्डल में आक्सीजन कम व कार्बन डाइ आक्साईड गैस में वृद्धि होती है। वायु के अशुद्ध होने पर वर्षा के जल में यह अशुद्ध गैसे घुल जाती हैं जिससे हमारे किसानों के खेतों की जो सिंचाई होती है उससे उत्पन्न खद्यान्न भी इन दूषित पदार्थों से दोषयुक्त हो जाते हैं। हमारे प्राचीन ऋषियों ने वायु शुद्धि के लिए अग्निहोत्र व यज्ञ का एक विघान किया था जिसे सभी परिवार प्रतिदिन प्रातः व सायं काल में करते थे। अग्निहोत्र में गोघृत व अन्य पदार्थों के जलने से समस्त वायु मण्डल शुद्ध होने के साथ वायु के किटाणुओं के नाश सहित स्वास्थ्य लाभ व साध्य व असाध्य रोगों के निवारण में भी सहायता मिलती है। यज्ञ से शुद्ध वायु से वर्षा का जल भी शुद्ध होता है जिससे खाद्यन्न भी शुद्ध उत्पन्न होता है। अतः हमें स्वच्छता पर विचार करते हुए यज्ञ व अग्निहोत्र के महत्व पर भी ध्यान देना चाहिये क्योंकि यह हमारे जीवन में उपयोगी व लाभ पहुचाने का काम करता है।
संक्षेप में हम यही कहेंगे कि स्चच्छता व शौच भी हमारे घर्म व कर्तव्यों का एक आवश्यक अंग है। यदि हम इसका पालन करेंगे तो इससे हमें विविध व अनेकानेक लाभ होंगे और यदि नहीं करेंगे तो इसके कुपरिणाम भी हमें व भावी पीढ़ियों को भोगने होंगे। समय पर सावधान होकर जाग जाना व अपने कर्तव्य का पालन करना ही मनुष्य को प्रशंसा व प्रसन्नता प्रदान करता व कराता है। आओं, अपने जीवन में स्वच्छता को अपना मुख्य कर्तव्य बनायें। स्वयं सुधरे और दूसरों को भी सुधारने का प्रयत्न करें। इसी में व्यक्ति, समाज व देश का कल्याण व लाभ निहित है। यदि हमारा देश स्वच्छ होगा तो हम विदेशों में अपनी बिगड़ी छवि को भी सुधार सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान का शुभारम्भ कर एक प्रशंसनीय कार्य किया है जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। इनके इस स्वप्न व अभियान को साकार करना सभी देश वासियों का नैतिक कर्तव्य है।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन भाई , अफाई की आज प;अहले से भी ज़ादा जरुरत है ,मोदी जी का सवाश्य्ताभियान्न एक अच्छा कदम है . पालीथिन के बैग की जगह कपडे के बैग होने चाहियें जो बार बार इस्तेमाल हो सकें और गन्दगी भी ना पढ़े .लेख बहुत अच्छा लगा .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद् श्रधेय श्री गुरमेल सिंह जी। लेख पसंद करने के लिए आभार। आपने सही कहा है कि पॉलिथीन की जगह कपडे के बैग होने चाहिए।
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद् श्रधेय श्री गुरमेल सिंह जी। लेख पसंद करने के लिए आभार। आपने सही कहा है कि पॉलिथीन की जगह कपडे के बैग होने चाहिए।