दोहे
बलात्कार पर कर रहे मोदी बिल को पेश ।
दलित नही महिला अगर होगा हल्का केस ।।
ब्लात्कार में भेद कर तोड़ा है विश्वास ।
अच्छे दिन अब लद गए टूटी सबकी आस ।।
कितना सस्ता ढूढ़ता कुर्सी का वह मन्त्र ।
मोबाइल के दाम में बिक जाता जनतन्त्र ।।
सड़को पर इज्जत लुटे मथुरा भी हैरान ।
न्याय बदायूं मांगता सब उनके शैतान ।।
नए सुशासन दौर में जनता है गमगीन ।
सौगातों में ला रहे वही सहाबुद्दीन ।।
छूटा गुंडा जेल से जिसका था अनुमान ।
जंगल राजा दे गया चिर परिचित फरमान ।।
न्याय पालिका मौन है , मौन हुई सरकार ।
अपराधी बेख़ौफ़ सब कैसा भ्र्ष्टाचार ।।
झाड़ू का विश्वास क्या गन्दा इसका कृत्य ।
व्यभिचारी को छोड़कर स्वजन बहारे नित्य ।।
काम वासना शत्रु सम वैरी सकल समाज ।
जो इनसे उन्मुक्त हो पावे जग का ताज ।।
नेह लुटाना विष हुआ जाति पाति के देश ।
आरक्षण के नाम पर नेता बदले भेष ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
बेहतरीन दोहे !
बेहतरीन दोहे !