भावगीत : राम से नेह लगाया कर तू
राम से नेह लगाया कर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से प्रेम जताया कर तू, तर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू………..’
भवसागर में भरा हलाहल, क्या बिसात है तेरी।
बिना पिये ना निकल सकेगा, क्या औकात है तेरी।
राम की नैया से ही पार, उतर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
धन्य है केवट की भक्ति, प्रभु राम के पैर धुलाए।
धन्य है शबरी की भक्ति, प्रभु राम को बेर खिलाए।
राम को भज नित धन्य तू, जीवन, कर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
रामभक्त हनुमान हुए हैं, अमर है जिनकी गाथा।
जिनके हृदय बिराजेंं राम, लखन और सीता माता।
हृदय बसा श्रीराम जपा कर, तर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
घर भेदी ने लंका ढाई, ये दुनिया ने जाना।
आया रामराज्यं घर-घर वहाँ, क्या सबने ये जाना।
भक्त विभीषण सा बन कर भी, तर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
बन-बन, गाँव-गाँव घूमे, रघुवर ने अलख जगाई।
नर, नारी, पक्षी, पशु सबको, धर्म की राह बताई।
ऐसी भक्ति कर भवसागर तू, तर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
मोह में प्राण गए दशरथ के, अहं से रावण हारा।
पत्थर बनी अहिल्या तारी, बाली भी संहारा।
रोम-रोम जब राम बसेंगे, तर जाएगा प्राणी।।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
क्रोध, अहं, मोह, बर्बरता से, बल सुबुद्धि भरमाई।
न शिवधुन उठा, न अंगद पैर, न लंका ही बच पाई।
क्षणभंगुर सा जीवन पावन, कर जाएगा प्राणी।
राम से नेह लगाया कर तू……….’
राम से नेह लगाया कर तू, तर जाएगा प्राणी।
राम से प्रेम जताया कर तू, तर जाएगा प्राणी।।
— आकुल, कोटा
बहुत सुन्दर भजन !
बहुत सुन्दर भजन !