आधुनिक बच्चे
खिंच के अपना खुद का फोटो दुसरो को देखावे
ऐसा करके पता नहीं वो मजा कौन सा पावे ।।
अंजाना हो कोई भी वो हित मीत बन जावे
और पुराने रिश्ते इनको तनिक भी नहीं भावे।।
लोगों का ये फेस दिखावे फेसबुक कहलावे
ट्विटर की चिड़िया को देखो हरदम उड़ती जावे ।।
व्हाट्सअप तो है और निराला
जग को है पागल कर डाला
पल में सबकी चिट्ठी को ये जग भर में पहुंचावे ।।
घर का कोई काम सुने ना वक्त का रोना रोवे
जेबखर्च का मोटा टुकड़ा फोन पे ही ये लुटावे ।।
महंगा फैशन महंगे फोन से जी एफ को रिझावे
मात पिता गर कुछ भी बोलें उनको आँख दिखावे ।।
नशा करें ये खुल्लम खुल्ला तंग आ जाये गली मोहल्ला
झूठ बोलकर भी इनको तो तनिक शरम ना आवे ।।
राम करें वो दिन भी आवे इन बच्चों की समझ में आवे
मात पिता हैं रब से ऊँचे इनकी सेवा स्वर्ग दिलावे ।।
वर्तमान के यथार्थ को व्यक्त करती सार्थक रचना !
वर्तमान के यथार्थ को व्यक्त करती सार्थक रचना !
एक छोटी सी कोशिश की है । सार्थक व त्वरित प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद श्रीमान !
प्रिय राजकुमार भाई जी, मोबाइल के इस नशे का क्या कहना! एक नायाब और सार्थक रचना के लिए आभार.
श्रद्धेय बहनजी ! वाकई मोबाइल ने आज एक नशा सा कर दिया है लोगों के दिलोदिमाग पर । बहुत अच्छी चीज के कुछ बुरे पहलू की तरफ इस रचना द्वारा इशारा किया है । मेरा सौभाग्य है की रचना आपको नायाब लगी । त्वरित व सार्थक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका ह्रदय से धन्यवाद ।
हा हा हा हा …. बहुत खूब ! पर अब फेसबुक और whatsapp के बिना हमारा गुजारा नहीं है.
सही कहा आपने आदरणीय ! लेकिन हर चीज के दो पहलू होते हैं । दुर्भाग्य से किसी भी चीज के बुरे पहलू को ग्रहण करनेवाले अधिक होते हैं और वही दिखाने का प्रयास मैंने किया है । उत्साहवर्धक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।
राजकुमार भाई , कविता बहुत अछि लगी .समय के साथ सब कुछ बदल जाता है . जो चेंज इन पच्चीस तीस सालों में आई है, उतनी कभी सौ वर्ष में भी नहीं आई . आज के बच्चे तो किताबें भी इंटरनेट पर ही पढ़ते हैं . हम बहुत पीछे रह गए महसूस करते हैं क्योंकि आज के बच्चे तो कम्पिऊतर ही हो गए हैं .यह भी एक दिन बूढ़े हो जायेंगे और यह भी वो ही बात कहेंगे जो आज हम कह रहे हैं क्योंकि जब तक ज़माना बहुत आगे चला जाएगा .
राजकुमार भाई , कविता बहुत अछि लगी .समय के साथ सब कुछ बदल जाता है . जो चेंज इन पच्चीस तीस सालों में आई है, उतनी कभी सौ वर्ष में भी नहीं आई . आज के बच्चे तो किताबें भी इंटरनेट पर ही पढ़ते हैं . हम बहुत पीछे रह गए महसूस करते हैं क्योंकि आज के बच्चे तो कम्पिऊतर ही हो गए हैं .यह भी एक दिन बूढ़े हो जायेंगे और यह भी वो ही बात कहेंगे जो आज हम कह रहे हैं क्योंकि जब तक ज़माना बहुत आगे चला जाएगा .
आदरणीय भाईंसाहब ! समय वाक़ई बहुत बदल गया है । सभी नहीं परंतु अधिकांश बच्चे अब पुराने रीति रिवाज रिश्ते नाते मान सम्मान से विमुख होते जा रहे हैं । फ़ेस्बुक जैसे साइट पर तो हजारों मित्र होंगे लेकिन गली मोहल्ले का एक भी मित्र नहीं होगा । यह भी बूढ़े होंगे तब महसूस करेंगे क्योंकि वाक़ई तब तक ज़माना बहुत ही आगे निकल चुका होगा । आपने बिलकुल सही कहा है । सार्थक व त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।