कथा साहित्यकहानी

कहानी : मेहनत का फल

प्राइवेट कंपनी की 12 घंटे की शिफ्ट में आदर्श रोबोट के माफिक बन गया था l मेंटेनेंस विभाग में इंजीनियर होने के कारण कई बार एक ही शिफ्ट में 18 घंटे तक भी काम करना पड़ता था l घर गए हुए कभी – 2 छः महीने से ज्यादा भी गुजर जाते थे l रह – 2 एक ही सवाल जेहन में आता था कि ऐसा कब तक चलता रहेगा ? घर – गाँव से किसी दोस्त का फ़ोन आता और वे घर आने के बारे में पूछते तो वह हँसते हुए कहता “क्या करें यार, अपने ही प्रदेश में प्रवासी बन गए हैं l” ऐसा कहते ही उसके भीतर का आक्रोश और दर्द एक साथ आँखों में उतर आता था l मगर नौकरी तो उसे हर हाल में करनी ही थी l पारिवारिक जिम्मेदारियों की जंजीर ने उसे जकड़ रखा था l ‘समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता’, ये शब्द याद कर वह अक्सर खुद को ढाढस बंधाने का प्रयास करता l किसी मित्र ने फ़ोन पर एक सरकारी संगठन में रिक्त पद होने की सूचना दी l आदर्श ने बिना देर किये आवेदन कर दिया l अब उसे लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए समय निकालना था l मगर यह उसके लिए शेर के मुहँ से निवाला छीनने जैसा था l

कुछ दिनों के बाद आदर्श की नाईट शिफ्ट लगी l यह 15 दिन के बाद होने वाला नियमित फेरबदल  था l मशीनों के भारी शोर – गुल के बीच से काम का अच्छे से निरीक्षण कर व अपने तकनीकी सहायकों को काम समझा कर वह पढ़ाई के लिए समय निकाल, परीक्षा की तैयारी करने लगा l यह कार्य दुष्कर था क्योंकि किसी भी मशीन में खराबी आने पर उसे फ़ौरन मौके पर पहुँच कर काम देखना पड़ता था l लेकिन आदर्श के इरादे मजबूत थे l उसे लिखित परीक्षा हर हाल में देनी ही थी l दिन बीतते रहे और परीक्षा की तय तिथि भी आ गई l

जाड़ों के दिन थे l पहाड़ पर फरवरी की ठण्ड अपने चरम पर थी l परीक्षा से एक दिन पूर्व शाम को आदर्श हिल स्टेशन पहुँच गया l उसका परीक्षा केंद्र वहीँ पर था l रात को एक मित्र के पास रुका l सुबह उठा तो पूरा हिल स्टेशन बर्फ़बारी से सराबोर था l यातायात पूरी तरह से ठप्प था l परीक्षा केंद्र काफी दूर था l बर्फ़बारी अभी भी जारी थी l आदर्श को हर हाल में परीक्षा केंद्र तक पहुंचना था l उसे बर्फ पर चलते हुए दो घंटे बीत चुके थे l बर्फ़बारी ने रास्तों को ढक लिया था l पांव के मौजे गीले हो चुके थे l हाथ और पावं जैसे बर्फ की तरह जमने लगे थे l गिरते – पड़ते और रास्तों की भूल – भुलैया को पार करते हुए जैसे – तैसे वो परीक्षा केंद्र तक पहुंचा l परीक्षा शुरू होने के समय से एक घंटा देरी से पहुंचा आदर्श कुछ असहज सा महसूस कर रहा था l चिंता की लकीरें उसके माथे पर उभर आई थी l अपनी सीट पर बैठते ही वहां मौजूद निरीक्षक ने उसे आश्वस्त किया कि बर्फ़बारी की बजह से परीक्षा 15 मिनट पहले ही शुरू हुई है l हथेलियों को जोर से रगड़कर उसने हाथों को गर्म करने की नाकाम कोशिश की और प्रश्न पत्र हल करने में रम गया l

आदर्श परीक्षा देकर उसी शाम बापिस अपनी कंपनी के लिए लौट गया l मौजे गीले होने के कारण पैर अभी भी सुन्न लग रहे थे l पांच घंटे में बस का सफ़र तय कर वह रात के करीब 2 बजे अपने क्वार्टर पहुंचा था l गर्म पानी में हाथ – पैर डुबोकर जैसे उनमें दोबारा जान आ गई थी l वह थक चुका था l बिस्तर पर पड़ते ही नींद ने उसे गहरे आगोश में ले लिया l

कुछ दिनों के बात लिखित परीक्षा का परिणाम निकला l आदर्श को यह जानकर  बहुत खुशी हुई कि वह लिखित परीक्षा में उतीर्ण हो गया है l अब उसे मौखिक परीक्षा यानी साक्षात्कार की तैयारी करनी थी l उसके भीतर उम्मीद के बीज फुट पड़े थे l इस सफलता से उसके भीतर एक नई उर्जा का संचार हुआ l वह साक्षात्कार की तैयारी में फिर जी – जान से जुट गया l

साक्षात्कार का दिन भी आ पहुंचा था l कक्ष में प्रवेश करते ही सामने पांच अधिकारियों को बैठा देख वो कुछ देर के लिए थोड़ा विचलित सा हुआ l मगर जैसे ही साक्षात्कार प्रारंभ हुआ वो धीरे – 2 सहज होता चला गया l सभी अधिकारियों के प्रश्नों के उत्तर वो तेज़ी और आत्मविश्वास के साथ देता रहा l लगभग 20 मिनट तक चले साक्षात्कार में सभी अधिकारी उसके जवाबों से संतुष्ट दिख रहे थे l कमरे से बाहर निकलते ही वह मन ही मन खुश था l उसके मन में इस नौकरी के मिलने की उम्मीद पक्की होती जा रही थी l उसके पास अधिक समय नहीं था l बड़ी मुश्किल से एक दिन की छुट्टी लेकर आया था l इसीलिए वो पहली बस पकड़ कर बापिस अपने काम पर लौट गया l

आदर्श को अब साक्षात्कार के परिणाम का इन्तजार था l कुछ दिन ऐसे ही बीत गए l अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी आदर्श अक्सर दिन में 3 – 4 बार इन्टरनेट में उस संगठन की वेबसाइट में परिणाम जरुर चेक कर लेता था l मगर हर बार परिणाम के न आने से खुद की बेचैनी पर मन मसोस कर रह जाता l एक दिन सुबह जैसे ही आदर्श काम पर पहुंचा तो एक मशीन रात से ही बिगड़ी पड़ी थी l शिफ्ट सँभालते ही आदर्श अपने तकनीकी सहायकों के साथ उसे ठीक करने में जुट गया l पूरा दिन इसी कशमकश में बीत गया l

छुट्टी होने पर आदर्श को रिजल्ट का स्मरण हो आया l रोज की तरह वो आज रिजल्ट चेक नहीं कर पाया था l जैसे ही उसने इन्टनेट खोला तो रिजल्ट की ‘नोटीफिकेशन’ सामने ब्लिंक कर रही थी l ‘ओपन’ बटन पर क्लिक करते ही आदर्श का दिल जोर-2 से धड़क रहा था l आखिर जिस परिणाम का उसे बेसब्री से इन्तजार था, वह इस बक्त उसके सामने था l जैसे ही रिजल्ट देखा तो उसे एक झटका सा लगा l उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि उसका नाम उत्तीर्ण प्रतिभागियों की सूची में नहीं है l तो क्या वह असफल हो गया है ? उसे तो पूरी उम्मीद थी कि वह अवश्य सफल होगा l उसके आँखों के आगे अँधेरा सा छाने लगा था l उसकी कड़ी मेहनत एक झटके में ही स्वाह हो गई थी l उसे याद आया कि वह कुछ ही महीनों में 30 साल का होकर ओवर ऐज हो जायेगा और फिर पुनः ऐसी किसी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पायेगा l दिलो – दिमाग बहुत गहरे तक उद्विघन हो चुके थे l बुझे हुए मन से वह प्लांट के गेट से बाहर निकल आया l

क्या उसे इसी तरह रोबोट के माफिक कार्य करते रहना पड़ेगा ? क्या यही उसकी नियति है ? तरह – 2 के नकारात्मक विचारों ने उसे भीतर तक घेर लिया था l वह पैदल चलता रहा l ख्यालों में खोये हुए उसने कब पुरे इंडस्ट्रियल एरिया का चक्कर लगा दिया था उसे पता ही नहीं चला l मन अशांत था इसीलिए आज वो अपने क्वार्टर भी नहीं गया l अंत में वह एक निर्जन स्थान पर जाकर बैठ गया l विचारों का द्वन्द रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था l वह वहीँ हरी घास पर लेट गया l दिमाग पर जोर डालने और नकारात्मक विचारों के हावी हो जाने से उसे मानसिक और शारीरिक थकावट हो चली थी l आँख बंद करते ही उसे कब नींद आ गई , उसे पता ही नहीं चला l जब उसे थोड़ी ठंडक का अहसास हुआ तो उसकी नींद खुली l समय देखा तो रात के 2 बज चुके थे l कीट – पतंगों का शोर और कुत्तों के भौंकने की आवाज उसके कानो में पड़ रही थी l वो उठा और अपने क्वार्टर की तरफ चल पड़ा l

अगली सुबह उठा तो ऐसा लगा मानों उम्मीदों का सूरज बीते दिन के साथ हमेशा के लिए ही डूब गया है l उसकी पहले वाली दिनचर्या फिर शुरू हो गई थी l कुछ दिन उसका मन काम में नहीं लगा l रह – 2 कर उसे अवसर को खोने का दर्द भीतर तक होता l बक्त बड़े से बड़ा जख्म भर देता है , आदर्श के साथ भी ऐसा ही हुआ l बीतते समय के साथ वो इस ग्लानि से उभरता चला गया और पुनः अपने काम में ईमानदारी से लग गया l यंत्रवत कार्य करते हुए वह परीक्षा और साक्षात्कार के बारे में लगभग भूल चुका था l इसी तरह 5 महीने बीत गए l अगली बार की सर्दियों ने पुनः दस्तक देना शुरू कर दी थी l

एक दिन आदर्श दोपहर के भोजन के बाद अपने तकनीकी सहायकों के साथ एक मशीन को दुरुस्त करने में व्यस्त था l मशीन के खुले इलेक्ट्रिकल कैबिनेट से उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा से आसपास गर्मी  हो गई थी l आदर्श सहित सभी तकनीकी सहायक पसीने से तर – बितर थे l इतने में आदर्श का मोबाइल बज उठा l उसने रुमाल से पसीना पोंछ कर फ़ोन देखा तो कोई अनजाना नंबर प्रतीत हुआ l मशीनों के  शोर – गुल के बीच उसने फ़ोन उठाया मगर आवाज स्पष्ट नहीं सुन पा रहा था, इसलिए उसने मोबाइल का लाउड स्पीकर ऑन कर दिया l दूसरी तरफ से एक शालीन और मधुर आवाज उसके कानो में पड़ी l हांजी…आदर्श राजपूत ही बोल रहा हूँ l आदर्श ने भी उसी शालीनता से जवाब दिया था l मिस्टर आदर्श मैं एच.आर. प्रबंधक शिवेंद्र सिंह बोल रहा हूँ l आपको वेटिंग लिस्ट में रखा गया था और आपका नियुक्ति पत्र आपके स्थायी पत्ते पर भेज दिया गया है l आपको बहुत -2 मुबारक हो ..! जॉइनिंग के लिए आती बार मिठाई लाना न भूलियेगा l वह व्यक्ति बिना रुके ही सबकुछ बोल गया था l ओके…थैंक यू सर..! आदर्श सिर्फ इतना ही बोल पाया था l

यह फ़ोन कॉल उसी संगठन से था जिसकी लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के लिए आदर्श ने जी-तोड़ मेहनत की थी l फ़ोन काटते ही वो कुछ क्षण के लिए स्थिर सा हो गया था l जिस अवसर को वह खो चुका था वह पुनः उसे मिल गया था l उसके सहायक उसकी मनोस्थिति भांप चुके थे l लाउड स्पीकर मोड पर उन्होंने एच.आर. प्रबंधक की बात सुन ली थी l वे सभी एक साथ बोल पड़े …सर बहुत -2 मुबारक हो … आपको आपकी ‘मेहनत का फल’ मिल गया है l आदर्श अन्दर से खुश तो था, मगर खुशी के हाव – भाव चाहकर भी उसके चेहरे पर नहीं आ पा रहे थे l वह सोचने लगा कि मेहनत का फल भले ही देर से मिले, मगर मिलता अवश्य है l भीतर की ख़ुशी ने उसकी आँखों को हल्का नम कर दिया था !

-मनोज चौहान 

मनोज चौहान

जन्म तिथि : 01 सितम्बर, 1979, कागजों में - 01 मई,1979 जन्म स्थान : हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत गाँव महादेव (सुंदर नगर) में किसान परिवार में जन्म l शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग), पीजीडीएम इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी l सम्प्रति : एसजेवीएन लिमिटेड, शिमला (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : 20 मार्च, 2001 से (दैनिक भास्कर में प्रथम लेख प्रकाशित) l प्रकाशन: शब्द संयोजन(नेपाली पत्रिका), समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, मधुमती, आकंठ, बया, अट्टहास (हास्य- व्यंग्य पत्रिका), विपाशा, हिमप्रस्थ, गिरिराज, हिमभारती, शुभ तारिका, सुसंभाव्य, शैल- सूत्र, साहित्य गुंजन, सरोपमा, स्वाधीनता सन्देश, मृग मरीचिका, परिंदे, शब्द -मंच सहित कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविता, लघुकथा, फीचर, आलेख, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रकाशित पुस्तकें : 1) ‘पत्थर तोड़ती औरत’ - कविता संग्रह (सितम्बर, 2017) - अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद(ऊ.प्र.) l 2) लगभग दस साँझा संकलनों में कविता, लघुकथा, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रसारण : आकाशवाणी, शिमला (हि.प्र.) से कविताएं प्रसारित l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय – महादेव, तहसील - सुन्दर नगर, जिला - मंडी ( हिमाचल प्रदेश ), पिन - 175018 वर्तमान पता : सेट नंबर - 20, ब्लॉक नंबर- 4, एसजेवीएन कॉलोनी दत्तनगर, पोस्ट ऑफिस- दत्तनगर, तहसील - रामपुर बुशहर, जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश)-172001 मोबाइल – 9418036526, 9857616326 ई - मेल : [email protected] ब्लॉग : manojchauhan79.blogspot.com

One thought on “कहानी : मेहनत का फल

  • राजकुमार कांदु

    अंतिम दम तक उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए । बढ़िया कहानी ।

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