गजल
मदीना वाले तेरा ये जो चेहरा
साथ जन्मों का लगता है गहरा।
यो न टुकड़े करो मेरे दिल के
दिल घरोने में महबूब ठहरा।
इतनी मिन्नत से आया है दर पे
हो न जाए कोई घाव गहरा।
मैंने सजदे किये थे मोहम्मद
तब कही जाके दीदार चेहरा।
बस दुआ तेरी काफी है मुझको
अब नही चाहिए कोई पहरा।
यो तो भटके रहे जिंदगी भर
प्यार तुझसे नही दूजा गहरा।
अब तो सुनले ये प्यारे मोहम्मद
यो न जाए जो दिल में है ठहरा।
नंगे पैरो पे चलके मै आऊ
झोली भर दे बंधे अब तो शहरा।
— कवि दीपक गांधी