गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैं समझता हूँ कि ये इन्सानियत की हार है.
आदमी का आदमी से जो बुरा व्यवहार है

इसमे घाटे का तो कोई प्रश्न ही उठता नहीं
लाभदायक इन दिनों बस धर्म का व्यापार है

भीनी भीनी खुश्बू फैली है धरा पर हर तरफ
मौसमो के घर में लगता है कोई त्योहार है

हम नहीं हैं, तुम नहीं हो, ये नहीं हैं, वो नहीं
इस बुरे संसार का फिर कौन ज़िम्मेदार है

घायलों को देखकर भी  कुछ नहीं करता कोई
सामने जैसे सभी के काँच की दीवार है

अपने कर्तव्यों की कोई बात ही करता नहीं
सब यही कहते हैं केवल ये मेरा अधिकार है

क़ायदे ,क़ानून इसमे आज भी जंगल के हैं
लोग फिर भी कह रहे हैं ये चुनी सरकार है

कामनायें इसमे मेरी पूरी हो पाती नहीं
ये धरा मेरे लिए तो एक कारागार है.

रात दिन ख़ुशियों की बारिश होती रहती है “असर ”
कलपनाओं का भी अपना इक अजब संसार है

अरविन्द ‘असर’

अरविन्द असर

शिक्षा-परास्नातक 'हिन्दी' जन्म - अगस्त ,1970 लेखन की विधायें- ग़ज़ल,गीत,दोहे, मुक्तक,छंद,लेख, समीक्षा इत्यादि प्रकाशित पुस्तकें- 'अन्तस, (ग़ज़ल संग्रह), वीर भगत सिंह(पद्ध बद्ध जीवनी). पता --D-2/15 रेडियो कालोनी, किंग्सवे कैम्प, दिल्ली-110009 मोबाइल न. 09871329522 इ मेल[email protected]