कविता – मन्नत
उस दिन
दरगाह वाले बाबा ने कहा
मन्नत का धागा बांध जा,
तेरी सब मुरादें पूरी होगी।
मन ही मन मुस्कुराती
मन्नतों को सोचने लगी,
क्या क्या मांगूं….
हाथों मे थामकर धागा,
मांग लूँ तीन मन्नतें,
और झट से बाँध दूँ
तीन गाठें…
और फ़ैल जाए
एक अद्भुत सा जादू…
जी मे आया,
एक गांठ से धरती मांग लूं,
दूसरी से तुम्हे बांध लूं,
और
तीसरी मन्नत से आसमान छू लूं….
दरगाह की
जाली वाली दीवार तक,
मेरे पहुंचने के पहले,
सब तय था –
हर गाँठ का जादू
और उसका असर….
फिर आई…
जाली की दीवार,
मेरे हाथों में धागा…
और मैं मांग बैठी-
पहली गाँठ, तेरा साथ,
दूसरी गाँठ, मेरा ठहराव,
तोसरी गाँठ, समर्पण…
दरगाह पर फैले
लोबान की गंध में,
एक जादू असर कर चुका था….
तेरा जादू – मुझे बांधता –
एक प्रेम-गाँठ में…
— रूपल जौहरी