कविता

कविता – वक्त यूँ ही चलता है

वक्त यूँ ही चलता है तू अनवरत
हर रंग हर मौसम में भीगता ..
यूँ ही छोड़ जाता है सब कुछ पीछे
चाहे तो भी ठहर सकता तू कहीं
तू श्रापित जो है कहीं न रुकने को

याद है  ?
हम तीनों मिले थे
खिलखिलाते हुए उस मोड़ पे
मैं …तुम और प्रेम…
यूँ ही साथ चलते चलते…
संग देखे हमने कई रंग कई मौसम..
देखा छूटने बिछड़ने का दर्द भी
तुम तो चलते रहे..
मैं ठहर गयी ..
हृदय में प्रेम को समेटे हुए …

सुनो…
मैं बहुत अधूरी सी हूँ
और मेरा प्रेम भी
बहुत संकोच में है

मुझे पता है तुम
वृत्ताकार  चलते हो
लौट कर  मिलोगे फिर
उसी मोड़ पर..
सुनो … तुम जल्दी आना..
वो खुशनुमा पल भी
लेकर आना
जो तुम ले गए थे साथ

हर रंग हर मौसम
तुम बिन उदास है
फ़िज़ां को खिलखिलाना है
एक बार फिर…

सही समझे तुम, मुझे
प्रेम में बावरी होना है
एक बार फिर…

रूपल जौहरी

रूपल जौहरी

सम्पादिका के जी साहित्य, नई दिल्ली