तीर-जीभ-तलवार
कुण्डलिया छंद
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1
दुख का कारण ना बनो, दुख में दो सँग साथ ।
सुख की वजह सदा बनो, भले न सुख में साथ।
भले न सुख में साथ, रहो खुश देख सुखी को।
कभी मशवरा-राय, न दो मत देख दुखी को।
जीभ-तीर-तलवार, कभी ना चले अकारण।
आश्वासन भी एक, बने ना दुख का कारण।।
2
चल जाए एक बार जो, तीर-जीभ-तलवार।
वीर-संत-ज्ञानी भिड़ें, ना निकले कुछ सार।
ना निकले कुछ सार, सभ्यता नष्ट हुई हैं।
युग बदले हर बार, जब कभी भ्रष्ट हुई है।
रहो प्रेम से यार, जेवरी भी जल जाए।
चलेंं न बस ये तीन, काम सब का चल जाए।।