लघुकथा – माँ मरी नहीं
रविवार की सुनहरी धुपहरी दोपहर को बच्चों के साथ खेलती विनी सहसा चक्कर खा कर गिर पड़ी तो घबरा कर वसुधा उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने पूरी तरह जांच कर बताया,” बच्ची में खून की बहुत कमी है… कुपोषण की शिकार है। यह ठीक से खाती-पीती नहीं है क्या?”
” ऐसी तो कोई बात नहीं डॉक्टर साहब! सुबह दूध पी कर और खूब अच्छा लंच और फल ले कर स्कूल जाती है और सारा खाना खत्म करके आती है । हाँ शाम को दूध नहीं पीती,” वसुधा ने कहा।
” आप बच्ची को विश्वास में ले कर पूछें। कई बार बच्चों की खाने में अरुचि हो जाती है इसलिये वे खाना फेंक देते हैं और डाँट के डर से घर पर बताते नहीं,” डॉक्टर ने कहा तो घर पहुँचकर वसुधा ने अतिरिक्त स्नेहसिक्त स्वर में विनी से पूछा, ” विनी बेटा! मम्मा तुम्हें डांटेगी नहीं… सच -सच बताना,तुम स्कूल वाला लंच फेंक देती हो?”
” नहीं मम्मा! फेंकती नहीं… तान्या को खिला देती हूँ ,”विनी ने सहमे स्वर में कहा तो वादा खिलाफी कर वसुधा भड़क उठी,” यह तान्या कौन है? और मैं सुबह जल्दी उठ कर इसलिए तुम्हें बढ़िया लंच बना कर देती हूँ कि तुम किसी तान्या-मान्या को खिलाओ?”
” वह मेरी बैस्ट फ्रैंड है मम्मा! उसकी मम्मा उसे खाना नहीं देती न ! पिटाई भी खूब लगाती है। उसकी नई मम्मा है वो। तान्या की अपनी मम्मा तो मर गई न,” कहते हुए सुबक उठी विनी तो वसुधा ने उसे कस कर सीने से लगा लिया और भीगे कंठ से बोली,” ओ मेरा बच्चा! कल से मैं तुम्हें दो लंच-बॉक्स दूँगी और तान्या से कहना कि उसकी माँ अब भी ज़िन्दा है… मरी नहीं ।”
— कमल कपूर