परिवर्तन
सावन के आते ही कैसे
खिल उठता सारा समाँ
लहलहा उठती वसुंधरा
झूम उठता ये आसमाँ
सावन के जाते ही देखो
पतझड की हो शुरुआत
सूखने लगते तरुवर सारे
झर झर झरते पीले पात
जीवन का भी यही उसूल
सुख के संग दुख के शूल
अज्ञानी मानव जाता भूल
परिवर्तन प्रकृति का मूल
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शशि शर्मा ‘खुशी’