गीतिका : हुई फिर देश में हिंसा
धधकती आग बरसी है सभी डरते जिधर देखो
हुई फिर देश में हिंसा लहू बिखरा इधर देखो
अहिंसा के पुजारी जो वही बेमौत मरते हैं
लगी ज्वाला दिलों में है बुरा अंजाम अब देखो
शराफत के मुखौटों में दरिंदे लाख बैठे हैं
इशारों पर भभक उठता शहर सारा वतन देखो
निशाना साधते हैं वो सभी मासूम मरते हैं
करे बदनाम सत्ता को यही है चाल सब देखो
खिलौने बन गए हैं हम चला व्यापार जोरों से
खरीदारी करे शासक निलामी बढ़त पर देखो
बुझी को फिर जलाते और फिर शोले भड़क जाते
करे कोई भरे कोई यही आतंक जब देखो
करे चित्कार मांगे न्याय जो निर्दोष थे बन्दे
भटकती रूह रो रो कर करे फरियाद सब देखो
लगा दो जोर सब अपना बुझादो आग के गोले
समय रहते गिरो बन गाज तबाही और मत देखो
मिली दो चार दिन की जिंदगी बुजदिल नहीं होंगे
करेंगे काम कुछ ऐसा रहे जो याद फिर देखो
— सुचि संदीप, तिनसुकिया, असम