असहिष्णुता
पूछते हैं हम उन महानुभावों से, असहिष्णुता की बात जो करते।
होता आश्चर्य यह कि ये, देश की एकता देख नहीं सकते।।01।।
चाहते हंै हम पूछना उनसे, बतायें असहिष्णुता कहते हैं किसे।
कर सकते सहन नहीं क्या, सामाजिक शांति कहते हैं जिसे।।02।।
समझ सकते अगर वास्तव में, ये देश की इस सच्चाई को।
राष्ट्र एकता-अखण्डता से ही, मिली है पहिचान हम सबको।।03।।
राग-द्वैष व असमानता का, बना है पर्याय यह असहिष्णुता।
राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की, है विरोधी असहनशीलता।।04।।
सहनशील व सहिष्णु राष्ट्र, ही, कहते भारतीयता के नाम को।
असहनशीलता-असमानता हैं, ये एकता के विरोधी भाव दो।।05।।
बतायें देश की जनता को, कहां दिख रही तुम्हें असहिष्णुता।
भावना सब की देश सेवा है, कहते कैसे हैं यहां असमानता।।06।।
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, बने यहां हैं सब भाई-भाई।
फिर कुछ खास जनों को, नहीं सुहाती यह राष्ट्र भलाई।।07।।
सावधान! ऐ स्वयंभू बुद्धिजीवियो, नहीं तुम्हारी दुर्भावना में आने वाले।
मानते थे हम आदर्श तुमको, पर तुम निकले समाज बांटने वाले।।08।।
राजा परीक्षित की रही महानता, अपनी मौत को भी दिया सहारा।
ऐसा वैदिक अतीत हमारा, तक्षक सम नाग से न किया किनारा।।09।।
असहिष्णु कहने/मानने वालों को, दिखती नहीं क्या ऐसी विशेषता।
सामान्य तो सामान्य यहां, हिंसक पशु भी दैव रूप में पूजा जाता।।10।।
निर्जीव पत्थर भी यहां मूर्ति बन कर, आस्था व विश्वास बढ़ाता।
फिर भी इनको देश-क्षेत्र में, असहिष्णु भाव ही नजर में आता।।11।।
यही नहीं.. जीव तो जीवात्मा है, यहां कण-कण में परमात्मा बसता।
धर्म-अद्यात्म के इस देश में, असहिष्णु भाव फिर कहां है दिखता।।12।।
हुआ ज्ञात यह हमको, असहिष्णु कहने वाले ही ऐसा भाव रखते।
असहिष्णुता से स्वनाम धन्य कर, राष्ट्र विरोधी षडयन्त्र भी रचते।।13।।
पुर्तगिज वास्को डि गामा को, राष्ट्र अन्वेषक कह देते सम्मान हम।
फिर भी राष्ट्रीय आत्मभाव की, सच्चाई को न समझ सके तुम।।14।।
न पहिचान सके क्या? इस महान् राष्ट्र की विशिष्ठता को।
क्यों करते व्यक्त बार-बार, अपनी निम्न स्तरीय भावना को।।15।।
चीनी यात्री ह्वेन सांग के, सन्देश को स्वीकारा हमारे राष्ट्र ने।
किया अंकित हमने सद्कर्म मानकर, इसे इतिहास के पन्नों में।।16।।
असहिष्णु का बखान करने वाले, जान न सके सम्भाव को कभी।
क्यों ऐसे ही बिगाड़ रहे हो, जीवन अस्तित्व तुम अपना सभी।।17।।
ग्रसित भाव साम्प्रदायिकता के, करते ये बदनाम राष्ट्रीय भावना को।
घौलते जहर ये कटुता का, तुले मिटाने राष्ट्र की शांति व्यवस्था को।।18।।
देश के गौरवशाली अतीत का, करें किन शब्दों में हम बखान।
चहुंओर प्रेम-स्नेह व सौहार्द्रता से, पूर्ण रहा है यह जहान।।19।।
भूल सकते क्या हम उनको, जिन्होंने देश को अपनी आहुति दी है।
दिलाता याद है इतिहास, हरेक मजहब ने सहभागिता की है।।20।।
अब्दुल हमीद की महान् कुर्वानी, सन् पैंसठ की है अमर कहानी।
असहिष्णुता कहने वाले, याद नहीं क्या इन वीरों की जवानी।।21।।
भारत-चीन संग्राम नायक, जसवन्त के शौर्य की कथा-कहानी।
राष्ट्र के हर-जन के मन में, रहेगी याद यह महा कुर्वानी।।22।।
मदर टैरेसा के सेवाव्रत को, करता नमन राष्ट्र का जन-जन।
है सब में एक ही ईश्वर, समझता इसे हमारा जन-गण-मन।।23।।
मिसाईल मैन कलाम की उपलब्धियों से, बढ़ा राष्ट्र का सम्मान।
वैज्ञानिक विकास से राष्ट्र सेवा, रहा है इनका सच्चा काम।।24।।
समझाना होगा इन्हें, सहिष्णुता व असहिष्णुता के इस अन्तर को।
जिससे राष्ट्र एकता को तोड़ने का, फैला रहेे हैं ऐसेे दुर्मन्त्र को।।25।।
स्वार्थवश देश की अस्मिता को, नजरन्दाज करना है इनका काम।
स्वनाम धन्यता हेतु समाज को, बदनाम करने का बांटते हैं जाम।।26।।
व्यक्ति विशेष से वैमन्यष्यता वश, करते देश को हैं ये बदनाम।
स्वयं अपने आप समझें ये, बढ़ेगा क्या इससे देश का सम्मान।।27।।
जन्म पाकर इस देश में, निश्चित ही जीवन स्तर भी यहीं बढ़ाया।
बताओ बदनाम करना ही रह गया, क्या देश को तुम्हारा चढ़ावा।।28।।
राजनीति के दल-दल से, ऊपर कभी देश की भी सोचो।
धिक्कार ऐसी राजनीति को, धिक्कार इस छोटी सोच को।।29।।
करो शर्म सम्मान लौटाने वाले, साहित्यकार व ऐसे रणनीतिकारो।
सामाजिक समरसता पर लिख कर, कुछ तो सद्ज्ञान फैलाओ।।30।।
क्या यह ज्ञात नहीं कि, सम्मान लौटाने पर अपमान किसका होता है।
बुद्धिजीवी हो कर क्यों, मानव जीवन के अस्तित्व को खोता है।।31।।
होता है दुःख उन साहित्यकारों से, चिन्ता नहीं देश की जिन्हें।
करो याद उन दिनों को, बनाया सम्मान योग्य देश ने ही तुम्हें।।32।।
व्यक्ति विशेष पर प्रतिशोध भाव से, ग्रसित दुराग्रही सज्जनो।
है यही नैतिकता क्या, दुर्विचारों से स्वदेश को बदनाम करो।।33।।
कुछ तो रहम करो, जाति-धर्म के नाम पर बांटने वाले जनो।
दिया अवसर राष्ट्र ने सबको, बढ़ते रहने का उसे याद करो।।34।।
बता दो हमको यह कि, दिया क्या तुमने राष्ट्र को जीवन में।
चाहतेे किस हक से हो, जब कुछ भी किया नहीं कभी तुमने।।35।।
लें संकल्प हम सब एक होने का, बनी रहे यह विचार धारा।
मिल कर विरोधी भाव जब त्यागें, बनेगा यह देश तब न्यारा।।36।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ’स्नेहिल’